इंसानियत का सच
सुनाकर इक कहानी आज नए समाज से तुम्हे मिलवाते हैं,
ढिंढोरा पीटते जहां इंसानियत का और मन में राक्षस छुपाते हैं,
जो खुद की कौम की परवाह न करते उनसे बेजुबान उम्मीद करते हैं,
सच्चाई और अच्छाई की सब बातों को बस किताब तक सीमित रखते हैं,
अपने अहम के खातिर जो मासूमों संग दरिंदगी दिखाते है,
उन पर ही बेजुबान क्यूं खुद से ज्यादा यकीन करते हैं,
मिटाने अपनी भूख को वो लाचार आंखो से इंसानों की ओर देखते हैं,
नहीं पता उन्हें इंसानियत खाकर भी हम उनसे ज्यादा भूखे बैठे हैं,
पिंजरे में कैद करते उन्हें जो वफादारी का मर्म सही पहचानते हैं,
और आजाद घूम रहे हैं वो जो अपनी हैवानियत का शिकार सबको बनाते हैं,
समझने की शक्ति जो हमको दी उसका प्रयोग वो बेजुबान करते हैं,
बोल न पाते तो क्या उनके अंदर जज्बात आज भी पत्थर न बन पाते हैं,
पार कर हर हद को हम खौफ का तांडव मचाते हैं,
गलती करी खुदा ने हमें इंसान बनाकर हम तो जानवर के लायक भी खुद को न बना पाते हैं