इंसानियत और हुनर
ख्वाइश नहीं मशहूर होने की,बस कर्म अपना करता
ख़ामोशी की महफ़िल में मै शोर मचाया करता हूं,
लोग करते हैं इंसानियत की बातें,
मै उसी का फ़र्ज़ अदा करता हूं,
कठिन समय में काम आ सकु किसी के,
रब से बस यही दुआ करता हूं,
गुमनामी की जिंदगी में बेनाम सा एक चेहरा हूं,
मुश्किलों की भीड़ में इंसानियत का पहरा हूं,
दिखावा करने का शौक नहीं,बस ख्वाब पूरे करता हूं,
काम लोगों के आ सकू इसलिए मेहनत बहुत करता
महफ़िल सजाकर अपनी यारी की,
माटी का कर्ज अदा करता हूं,
मशगूल हैं दुनिया जहां रोज़ किसी खोज में,
वहीं मै किसी की तलाश पूरी करने में जुटता हूं,
बनाया जिस हुनर ने मुझे,नाम उसी का करता हूं,
काम आ सकू देश के इसलिए तमाशा रोज़ नया
दिखाता हूं,
दर्द समझ बेजुबा के तकलीफ उसकी कम मै करता
चार रोटी मिली खाने को तो दो उनके नाम करता हूं,