इंद्रियों की अभिलाषाओं का अंत और आत्मकेंद्रित का भाव ही इंसा
इंद्रियों की अभिलाषाओं का अंत और आत्मकेंद्रित का भाव ही इंसान को महापुरुष बना देती है और वो शुद्र इंसानों में भी पूजनीय और भगवान का दर्जा पा जाता है।
इंसान के कर्म ही उसे सात्विक तामसिक और सात्विक मार्गों की तरफ ले जाते है।
RJ Anand prajapati