इंद्रधनुष और तुम
कविता
इंद्रधनुष और तुम
*अनिल शूर आज़ाद
एक लंबे
अन्तराल के बाद
आज/आसमान पर
इंद्रधनुष/दिखा है
(हालांकि/इस बीच
बिना इंद्रधनुष के/बारिश
कई बार/हो चुकी है)
अज़ब संयोग है
रोज/तुम्हारी याद
आते रहने के बावजूद
तुम भी/स्वयं
आज ही/आई हो
इसलिए/यों ही
एक ख़्याल
आता है कि
अब मैं/इंद्रधनुष को
छू सकता हूं।
(रचनाकाल : वर्ष 1987)