इंतज़ार
आदमी वक्त के हाथों कितना मजबूर है ,
सलाहयित होने के बावजूद कितना मा’ज़ूर है ,
एक अदने से जरास़िम का तोड़ अब तक खोज रहा है ,
मौत के खौफ़ से बेचैन बेब़स ज़िंदगी गुज़ार रहा है ,
चेहरों पर खुशी की मुस्कान गुम़शुदा है ,
दिल के किसी कोने में छुपा गम़ सालता है ,
जश्न के म़ौके भी अब फीके- फीके लगते हैं ,
अब तो दिल अज़ीज़ भी दूरियाँ बनाएं रखते हैं ,
अपनी सलाम़ती की फ़िक्र मे इंसाँ अजीब सी खुदगर्ज़ी का शिकार हो रहा है ,
अपने पराए हो रहे हैं , दोस्तों से किनारा कर रहा है ,
इन्सानी सोच कुंद हो नाक़ाम हो रही है ,
मुस्तक़बिल पर धुंध छाती नज़र आ रही है ,
अब तो इंतज़ार है , के कुछ इस क़दर क़ुदरत करिश्म़ा कर जाए ,
तब ये माय़ूसी में डूबे दिन खत्म हों ,औरअच्छे दिन लौटआएं ,