इंतज़ार भी रो पड़ा,
याद करते अभी तो कहाँं खास है,
हम तो इस जगा कितने उदास है।
बात जो निकली इंतज़ार भी रो पड़ा,
ये कहाँ आ गये मिलने की न आस है।
रात जो गुज़री राह तकते हुऐ,
नाम सब ने रख्खा दीवाने-खास है।
राहगुज़र नयी है न सफर नया,
फिर,ता-उम्र की तन्हाई पास है।
कितनी दूर निकल यहाँ आ गये,
पिछली यादें व गुबार रास है।
-मनिषा जोबन देसाई