इंतिज़ार पर लिखे अशआर
लौट आओ या अब नहीं लौटो ।
अब हमे तेरा इंतिज़ार नहीं ।।
याद तुमको हमारी आ जाती।
खत्म ये इंतिज़ार हो जाता ॥
कितनी एहसास में भी बेचैनी।
कितना आंखों ने इंतिज़ार किया।।
कोई उम्मीद थी नहीं फिर भी ।
दिल तेरा इंतिज़ार कर बैठा ।।
खत्म जो उम्र भर न हुआ ।
मेरी आंखों का इंतिज़ार रहा ।।
रूह को भी हमनें
बे’क़रार किया ।
हमने जब तेरा
इंतिज़ार किया ।।
अपनी आमद की बात मत करना ।
अब हमें शौक़-ए-इंतिज़ार नहीं ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद