इंतजार
रात गहरी थी सुबह का सत्कार था
उससे मिलने को दिल बेकरार था
काली रातों के साए को चीर कर
मिलन प्रेम का ले रहा आकार था
कई बसंत बीत गए पुकारते उसको
आज मौसम बड़ा ही खुशगवार था
आस मिलन की यूं ही नहीं जगी होगी
बीज प्रेम का प्रस्फुटन को तैयार था
आए पहलू में वो तो ‘रहबर’ ऐसा लगा
जिंदगी को बस इसका ही इंतजार था
इंजी. संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश