इंतजार
लघुकथा
इंतजार …
आज फिर उस खंडहर हुये मकान के टूटे दरवाजे पर भगौनी में दूध लिए बूढ़ी माई एक फोटो को टकटकी लगाये आँसू भरी आँखों से ममत्व भाव से निहार रही थीं। साफ दिख रहा था कि अतीत का कोई सुखद हिस्सा उसे विह्वल कर रहा था।
उनके कानों में कुछ आवाजे़ गूँज रहीं हैं–
“माई,भूख लगी है..दूध दे न!”
“माई ,देख तो जरा ,ये कपड़े!मुझ पर खिल रहे हैं न!”
“माई ,मैं चली जाऊँगी तो कैसे रहेगी तू अकेली”
“माई ,देख…तेरा सपना पूरा हुआ। अव्वल आई हूँ मैं।
“माई,नहीं करनी मुझे शादी..मैं बस तेरे साथ रहना चाहती हूँ तेरी छाया बन।”
घर के भीतर के टूटे दरवाजे से कुछ टकराया तो बूढ़ी माई वर्तमान में आई।
उसकी आँखों से अविरल आँसू बह रहे थे।याद आया उसे कि वर्षों पहले ऑफिस से वापिस लौटी ही नहीं। तब से हर रोज इंतजार ही माई का काम रह गया था।
“मेरी लाडो ,तू जहाँ भी है ,सुखी रहना। बस मेरे अंतिम साँस लेने से पहले अपनी सूरत दिखा जाना।”रोते रोते उसकी नज़र तस्वीर पर पड़ी तो देखती रह गयी। बिटिया के पीछे नटवर नागर वंशी बजाते झलक रहे थे।
©पाखी