इंतजार
प्रेम…प्यार…इश्क…मोहब्बत….लव सब एक ही एहसास के अलग-अलग नाम हैं। कब होगा? कैसे होगा? किससे होगा? क्यों होगा? …कोई नहीं जानता। इसे न तो जाति से मतलब…न मजहब से, न रंग से मतलब….न उम्र से..एक अजीब सा नशा होता है ये…इसकी दवा यही है कि ये बीमारी दोनों को उम्र भर बनी रहे किन्तु घर…परिवार…समाज.. रिश्तेदार एक अच्छा डॉक्टर बनकर इस लाइलाज बीमारी का इलाज शुरू कर देते हैं जिसका परिणाम कभी-कभी भयावह भी हो जाता है।
ये कहानी है वैष्णवी की जिसका प्यार-मोहब्बत से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था …एक सीधी, सभ्य और सरल स्वभाव की लड़की जिसे ये सब बेहूदा लगता था …कब खुद भी इस बेहूदगी में शामिल हो गई पता ही नहीं चला। जी हाँ …प्यार हो गया था उसे।
चार साल बीत गए किसी को भी इस प्यार की खुशबू नहीं आई…. आती भी कैसे..उसने कभी मर्यादा की लक्ष्मण रेखा को पार ही नहीं किया।
कुछ समय बाद उसे सरकारी नौकरी मिल गई। घर वालों ने शादी की बात चलाई तो सब्र का बाँध टूट गया और चार सालों की गुप्त तपस्या का रहस्य सामने आ गया।
बस शुरू हो गया प्रताड़ना का दौर…”क्या इसी दिन के लिए तुम्हें पढ़ा लिखाकर बड़ा किया था हमने…कि तुम एक दिन हमारी ही इज्जत पर दाग लगा दो”
कलंक, कलमुँही, कुलच्छनी और न जाने कैसे-कैसे शब्दों से अलंकृत किया गया उसे। भाई ने उसे जमकर पीटा…।बड़ी बहन, जो कि कल तक खुद को बड़े ही खुले विचारों वाला कहती थी आज अपने ही विचारों के सख्त खिलाफ थे। उसके पिता जो कि और लोगों को बदलते समय के साथ चलने को कहते थे…जब खुद पर आई तो जड़वत हो गए। पढ़ा-लिखा आधुनिक लबादे में लिपटा संभ्रान्त परिवार पुनः अपने असली लिबास में आ गया और रूढवादी विचारधारा का समर्थक बन गया। एक तरफ सारा परिवार और दूसरी तरफ अकेली वो। बार बार एक ही प्रश्न कैसे हुआ… कैसे हो गया ये सब?इस प्रश्न का उत्तर कभी कोई दे भी पाया है भला…जो वह दे देती। माँ-बाप, भाई-बहन सब खिलाफ…आज तक निभाए गए सारे फर्ज को एहसान का नाम देकर उसकी कीमत के रूप में उसके प्यार का बलिदान मांगा जा रहा था।
वो अक्सर सोचती थी कि आखिर उसके प्यार में कमी क्या है? …सरकारी नौकरी करता है, सभ्य है, सुशील है और किसी बात में किसी से कम नहीं है फिर भी पूरा परिवार एकजुट होकर उसके खिलाफ खड़ा था। ऐसा इसलिए कि जिससे वो प्यार करती थी वो उसके जाति का नहीं था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसे कैसे छोड़ दे जिससे प्यार किया है और जिसे देखा भी नहीं उसके साथ कैसे ज़िन्दगी बिताए। अंत में उसने निश्चय कर लिया और सबसे कह दिया कि शादी करेगी तो अपनी मर्जी से।पिता जी ने साफ कह दिया था कि अगर ऐसा हुआ तो उनके घर से उसका रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। उसने बस यही कहा कि वो इंतजार करेगी उनके मानने का।