इंतजार में तेरे
हम तो आज भी बैठे है ,
इंतजार में तेरे ,
मुकर्रर थी जो जगह ,
मुक़म्मल-ए- इश्क़ के लिए ।
फ़क़त तेरे मुनासिब नहीं ,
मुक़म्मल -ए- इश्क़ मेरा ।
शिद्दत -ए- मोहब्बत में ,
दिल -ए- जज्बात को समझो ।
अब भी देर न हुई ,
सनम तेरे लौट आने में ।
खता तेरी भुला देगे ,
तहे दिल से लगा लेगे।
लौट के आ महबूब मेरे ,
शिद्दत-ए-मुहब्बत की खातिर ।
हम तो आज भी बैठे है ,
इंतजार में तेरे ।
डां. अखिलेश बघेल
दतिया ( म.प्र. )