इंतजार की घड़ियां
बांध सबर का बंधा हुआ है, टूट ना जाए मेरी आस ।
दूरी से तेरी महक सूघतीं रुकी पड़ी है सूखी सांस ।।
छिन छिन भारी कटता कैसे, जैसे करना हो सागर पार।
सोखी है पर्वत की चढ़ाई, सुगम भी बन जाता तपता थार।।
आगे पीछे की सुध ना कोई, बन जीवन गया है इक भार।
आते दिन और जागी रातें, कर कर घड़ियों का इंतजार।।
बड़ा कठिन इसका कटना है, लिखने को पाती बैठे।
डूबे से दिल की बातों को, कलम बंद करके देखें।।
खडग काटती हैं शीशो को, कलम जोड़ती शब्दों को।
दो शब्द लिखें तेरी खातिर मे, इंतजार रहे कुछ जीने को।।