इंकार का हक…
आज मैंने इन साँसो की, कहानी लिख दी
तुम्हारे नाम अपनी ये, जिंदगानी लिख दी…
चाहे अपनाओं या चाहे, ठुकरा दो मगर
इस दिल ने धड़कनों की, रवानी लिख दी…
ज़माने के गमों की, अब परवाह किसे है
आँसूओं के नाम हंसी की, जवानी लिख दी…
है अब भी इंकार का हक, तुझे मेरे हमदम
इंतजार के नाम, अंतिम साँस की निशानी लिख दी…
-✍️ देवश्री पारीक ‘अर्पिता’