“इंकलाब एक मानसिकता “
इंकलाब आख़िर क्या है ?
कभी सोचा है आपने ?
कभी विमर्श किया है इसपर?
क्या ये आपके अनुसार कोई नारा है ?
क्या ये कोई शब्द मात्र है?
क्या आप इसको विद्रोह या बग़ावत के तौर पर समझते हैं?
क्या आप इसको किसी जाति विशेष अथवा किसी व्यक्तिगत मानसिकता से जोड़कर देखते हैं?
कहीं आप इसको किसी मज़हब के पलड़े पर तो नहीं तौलते?
कहीं आप इसको सत्ता के विरुद्ध विद्रोह मात्र तो नहीं समझतें?
कहीं आप इसको किसी वर्ग या किसी अन्य उपद्रवी तत्वों से जोड़कर तो नहीं देखते?
अगर आप मेरे प्रश्नों का जवाब हां में देते हैं तो मैं अफसोस व्यक्त करूँगा आपकी सूझबूझ पर ,आपकी मानसिकता पर और अपना नैतिक कर्तव्य समझते हुए इंकलाब से जुड़ी कुछ वास्तविक जानकारी से आपको अवगत करूँगा।क्योंकि मैं केवल वास्तविकता को प्रमाण मानता हूँ, किसी काल्पनिक या किसी एक पक्षीय समझ के आगे मैं घुंटने नहीं टेकता। जी हाँ मैं इंकलाब को एक मानसिकता समझता हूँ जो किसी भी सल्तनत ,किसी भी सत्ता के लिए उतना ही जरूरी है।जितना कि जीवित रहने के लिए सांसे, प्रकृति के लिए हवा-पानी ,माटी ,पेड़-पौधे ,जीवजन्तु ,मानव इत्यादि।
इनमें से कुछ भी चीजें हमेशा के लिए प्रथक कर दी जाए तो वास्तव में सन्तुलन खो जाएगा।इस तरह धीरे-धीरे अन्य चीजें भी अपना वजूद खोती चली जायेंगीं और अन्त में जो कोई भी अंतिम व्यक्ति पृथ्वी पर होगा वो हमेशा उस व्यक्ति को कोसेगा जो इस विनाशकारी आहुति का जनक होगा।
इस बात को सीधे हम सत्ता से जोड़कर समझ सकते हैं।
किसी भी देश जिसमें सत्ता है उसकी प्रगति के लिए इंकलाबी समझ का जिंदा रहना बेहद जरूरी है।और हमें इंकलाबी समझ को समझना उतना ही जरूरी है जितना कि अपने भविष्य को।
आइये इंकलाब को जानें आखिर इंकलाब असल में है क्या।
इंकलाब एक नारा है लेकिन सिर्फ एक नारा ही नहीं है।
इंकलाब भारतवर्ष की आजादी के लिए उठायी गयी आवाज़ थी जो कि पहाड़ो से मजबूत थी हवाओ से तेज़ ही तूफ़ानों से अत्यधिक सक्रिय थी।आग से अधिक गर्म थी।लोहे से मजबूत थी।जी हाँ इंकलाब अबतक के सभी लोकप्रिय नारों में से एक है जो किसी भी सत्ता किसी भी शासन के विरुद्ध विद्रोह का प्रतीक रहा है। लेकिन सिर्फ विद्रोह के लिए ही इसका इस्तेमाल नहीं किया गया। ये एक परिवर्तन का प्रतीक रहा है सभी वर्गों सभी लोगो के हित के लिए ,सभी प्रकार के लोगों के लिए ,सम्पूर्ण देश के हित के लिए।
इंकलाब उर्दू-फारसी-अरबी भाषा से सम्बंधित शब्द है। लेकिन इसका मतलब आप ये ना निकालें के ये हिन्दी का नहीं तो हम इसको नकार दें इससे परहेज करें ।यदि आप इसको जातीय भाषा से जोड़कर देखेंगें तो वास्तव में आप उस पथ पर चल रहे होंगें जिसकी दिशा जातिवादी दलदल में जाती है।जिससे आपका निकलना तक़रीबन नामुमकिन ही होगा।देखिए इंकलाब शब्द का मतलब होता है “क्रांति” एक ऐसी क्रांति जो हमेशा दिलों में मशाल की तरह रहनी चाहिए। क्रांति का मक़सद
किसी भी शासन के द्वारा किए गए कृत्यों के ख़िलाफ़ जनता का एकजुट होकर एकतासूत्र में बंधकर और न केवल अपने भविष्य बल्कि आगामी पीढ़ियों व सम्पूर्ण देश के हित लिए विद्रोह करना है। अर्थात तख्ता पलट करना ,सरकार को पूर्णतः बदलने के लिए प्रयास करना होता है। यह शब्द उस समय भारतीय आवाम के मध्य आम हो गया जब क्रांतिकारी “शहीद भगतसिंह”
ने दिल्ली सेन्ट्रल असेम्बली में ज़ोरदार धमाका कर “इंकलाब जिंदाबाद”के नारे को अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर बार बार दोहराया।इस शब्द के साथ जुड़े “जिंदाबाद” का मतलब है ‘हमेशा ज़िंदा रहना’ निरन्तर आबाद रहना ठीक इसी प्रकार “इंकलाब जिंदाबाद” का पूर्ण अर्थ हुआ ‘कभी ना मरने वाली क्रांति’।
यद्धपि इंकलाब शब्द आजादी मिल जाने के बाद भी प्रयुक्त होता रहा है या यूँ कहें आज भी इसका प्रयोग हो रहा है। मग़र कुछ लोग इसके इतिहास इसकी आवश्यकता को बिना समझे इसे समझ नहीं पाते और ये कुछ लोग वे हैं जो जातिवादी मानसिकता,एक पक्षीय मानसिकता की बीमारी से ग्रसित हैं। ये ऐसी बीमारी से निजात पाने के लिए कोई कदम उठाते ही नहीं बल्कि जीवनपर्यंत उसी नकारात्मक रवैये व पथ पर चलते रहते हैं।शायद मज़हब की दलदल में इतना फँस जाते होंगें।
तो इंकलाब शब्द को आप समझ गए लेकिन आखिरी पंक्तिया सुनकर भी आप ना बदलें तो परिवर्तन के लिए कोई भी ख़्वाब आपका कोई भी नारा सच नहीं महज एक दिखावा होगा।आप अपने आपको देश का हितैषी नहीं फ़िर तो आप मज़हबी नुमाइंदे समझे जाएंगे।
देखिए इंकलाब शब्द का उद्देश्य कतई भी ग़लत तरीके से विद्रोह नहीं होता है बल्कि कुशासन के विरुद्ध विद्रोह होता है।कुशासन के हानिकारक ,असहनीय ,भेदभाव,जातिपक्ष व अन्य नकारात्मक कल-कामों ,कृत्यों की खिलाफत करना है जो निःसन्देह हितकारी है।
हालांकि यह भी समझा जाना चाहिए कि “इंकलाब” का अर्थ किसी “हिंसा की क्रांति” को न दर्शाकर बल्कि परिवर्तन के लिए उठ रही बुलन्द आवाज़ों से है ऐसी आवाज़े जो जिंदा रहती हैं तो देश उन्नत रहता है।
इंकलाब को एक उर्दू-फारसी-अरबी शब्द ना समझा जाए बल्कि एक मानसिकता समझा जाए ठीक सूरज की किरणों की भांति जो बिना भेदभाव सभी प्रकार के जीवों ,प्राणियों पर पड़ती हैं।या ये समझिए उन्नत किरणों को बरकरार रखने के लिए इंकलाबी मानसिकता का विस्तार जरूरी है।मैं स्वयं को इंकलाब का मित्र समझता हूँ और जीवनपर्यंत मित्रता निभाउंगा।
अब आपको तय करना है आप किसी मजहब के पक्ष में जाकर सोचते हैं या सर्वप्रथम सम्पूर्ण देश के लिए सोचते हैं।
मैं हर बार ,हर सांस ,हर दिन ,जब तक जीवित हूँ तबतक कहूँगा……
इंकलाब जिंदाबाद
इंकलाब जिंदाबाद
ये मेरी सोच है कभी ना बदलने वाली सोच ,ये सोच ही मैं हूँ।
“‘जात-मजहब सब इक़ तरफ़ा
मेरा तन-मन-धन ये मेरा वतन'”
“किसी मज़हब के नाम पर पहचान की ज़रूरत नहीं
मुझें गीता, पुरान ,रामायन ,कुरान की ज़रूरत नहीं”
जयहिन्द जयभारत
इंकलाब जिंदाबाद…..?
त्रुटियों के लिए क्षमाप्रार्थी?
धन्यवाद !
__अजय “अग्यार