*** ” आ लौट चलें हम……!!! ” ***
*** आ लौट चलें हम… !
उस गांव की ओर….
उस जंगल की ओर… ,
जहां हमें सामाजिकता की एक परिभाषा मिला ।
जहां हमें तन ढकने की एक विचार…..
और सुंदर संस्कृति को एक अक्षुण्ण आकार मिला ।
आ अब लौट चलें हम….!
उस आब-हवाओं की पनाह में ,
उस पगडंडी-बाट में ,
जहां किसी आई.सी.यू. की तरह..
ऑक्सीजन की कोई फीस नहीं ।
जहां किसी नई-नई इन सड़कों की तरह…
जिंदगी में कोई भटकाव नहीं ।
आ लौट चलें हम….!
उस मिट्टी की खुशबू की ओर…
आ लौट चलें हम….!
उस फूलवारी-बागों की क्यारी की ओर….,
जहां अपनेपन की प्यार पनपती और संवरती है ।
जहां की महकती हवाओं में किसी ईत्र की तरह…
मन कभी बहकाती और भटकती नहीं है ।
आ अब लौट चलें हम…..!
उस पनघट की डगर……
उस मधुर कलरव करती पंछी की गेह-गहवर…,
जहां वसुधैव कुटुंबकम् वसुंधरा बसती है …!!
जहां पहुँचने चंचल मेघ मल्हार-पवन भी तरसती है….!!
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर ( छ. ग. )
१० / ०७ / २०२१