आ जाओ
अब आओ आ भी जाओ,हे कान्हा कृष्ण मुरारी
पथराई राह तकती, अंखियां भी अब बेचारी।
इंतजार करते करते, बीती उम्र गिरधारी
न चैन पाऊं दिन में, बेचैनी रैन सारी।
मन है कि जा फंसा है, अंजान से भंवर में
मैं खोजती हूं तुमको,हर गांव हर नगर में ।
न आए क्यों तुम कान्हा, घबराऊँ मैं बेचारी
इतने बड़े जगत में, मुझे आस बस तिहारी।
विरहा की इस चिता से, निकालो मुझे त्रिपुरारी,
लेलो शरण में अपनी, मैं जाऊं तुझपे वारी।
नीलम शर्मा