आ अब लौट चले
आ अब लौट चलें –
छत्तीसगढ़ के दक्षिण में स्थित जिला है बस्तर जिसका मुख्यालय जगदलपुर है यह पहले दक्षिण कौशल नाम से जाना जाता था खूबसूरत जंगलों और आदिवासी संस्कृति में रगा बस्तर प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी के तौर पर जाना जाता था ।
किसी समय भारत के केरल जैसे राज्य बेल्जियम इजरायल देश से बड़ा व्यवस्थित बस्तर कोंडागांव दन्तेवाड़ा सुकमा बीजापुर जिलों से घिरा हुआ है ।
यहां की सत्तर प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है बस्तर की तहसीलें है बकावंड, लोहंडीगुडा, तोकापाल,दरभा,बास्तानार,जगदलपुर,बस्तर सरल स्वभाव के जनजाति समुदाय एव प्राकृतिक संपदा सम्पन्न प्राक्रतिक सौंदर्य एव सुखद वातावरण का धनी है ।
उड़ीसा से शुरु होकर दंतेवाड़ा की भद्रकाली नदी में समाहित होने वाली दो सौ चालीस किलोमीटर इंद्रावती नदी बस्तर के लोंगो के लिए आस्था भक्ति कि प्रतीक है ।
इंद्रवती नदी के मुहाने पर बसा जगदलपुर एक प्रमुख सांस्कृतिक एव हस्त शिल्प केन्द्र है यहाँ मौजूद मानव विज्ञान संग्रहालय बस्तर आदिवासियों की सांस्कृतिक ऐतिहासिक एव मनोरंजक सम्बंधित बस्तुये प्रदर्शित की गई है डांसिंग कैक्टस कला केंद्र बस्तर के विख्यात कला संसार की अनुपम भेंट है बस्तर के लोग दुर्लभ कला कृति उदार संस्कृति एव सहज सरल स्वभाव के धनी है।
बस्तर जहां प्रकृति ने अपनी खूबसूरती की विरासत से निराली छटा बिखेर रखी है चारो तरफ हरियाली मनोरम वातावरण एव ब्रह्मांड का बेहतरीन समन्वय प्राणि प्रकृति एवं प्राकृतिक सौंदर्य के साथ साथ वन जंगलों से आच्छादित हरियाली बरबस आम जन का मन मोह लेता है।
बस्तर जनजातीय जनपद है दुर्भाग्य से यहां के भोले भाले जनजातीय लोंगो को सामाजिक समानता के छद्म लड़ाई में सम्मिलित करने की मुहिम कुछ अवांछित तत्वों द्वारा की जाती रही है जिसके कारण यहां का जनजातीय समाज संसय की स्थिति में जीता रहता है ।
अपनी दम घुटते जीवन की विवसता को व्यक्त भी नही कर पाता है।
बस्तर की प्रमुख जन जातियों में गोड, मारिया ,मुरिया,
भतरा,हल्बा,धुरूवा समुदाय का जन जातीय समाज निवास करता है ।
बस्तर पहाड़ों झीलों जंगलों से घिरा है एव इसकी भौगोलिक स्थिति बहुत जटिल है ।
सन 1334 में बस्तर रियसत कि स्थापना हुई जब अंतिम काकतिया राजा रुद्र देव के भाई अन्नाम देव ने वारंगल छोड़ दिया और बस्तर में अपना शाही साम्राज्य स्थापित किया महाराजा अन्नाम देव के बाद हमीर देव,बैताल देव,पुरुषोत्तम देव,प्रताप देव,दिकपाल देव,राजपाल देव ने शासन किया प्रारम्भिक राजधानी बस्तर बसाई गयी जिसे बाद में जगदलपुर स्थानांतरित किया गया ।
बस्तर शासन के महाराज प्रवीर चंद भंज देव सभी समुदायों विशेषकर आदिवासियों के बीच बेहद लोकप्रिय थे ।
दंतेश्वरी बस्तर की आराध्य देवी है प्रसिद्ध दंतेश्वरी देवी के नाम से दंतेवाड़ा रखा गया है उन्नीस सौ अड़तालीस में भारत के राजनैतिक एकीकरण के समय बस्तर का भारत मे विलय हो गया।
लम्बी गुलामी के बाद लगभग नौ सौ वर्ष बिभन्न इस्लामिक आक्रमणकारियों एव मुगल शासन एवं लगभग दो सौ वर्षों की अंग्रेजी गुलामी के बाद भारत आजाद हुआ और विभक्त छोटे छोटे राज्यो के एकीकरण के बाद एकात्म राष्ट्र हिंदुस्तान का जन्म हुआ ।
द्विराष्ट्रवाद के आधार पर विखंडित भारत एव एकिकृत हिंदुस्तान पंद्रह अगस्त सन सैंतालीस को अस्तित्व में आया स्वतन्त्र राष्ट्र के समक्ष अनेको चुनौतियां खड़ी थी बंटवारे का दंश बटवारे में जन धन की हानि पुनर्स्थापना एव कश्मीर में कबायलियों के आक्रमण आदि फौरी समस्याओं ने विकराल रूल धारण कर रखा था साथ ही साथ शिक्षा स्वास्थ खाद्यान्न आदि की परम्परागत समस्याएं थी।
स्वतंत्रता से पूर्व के शासकों ने अपने मतलब के लिए रेल डांक दूर सांचार आदि को अवश्य स्थपित किया था लेकिन आम जनता गरीब अशिक्षित एव अपने भविष्य की राह निहार रही थी।
स्वतंत्रत राष्ट्र में संसाधन की कमी अलग समस्याएं मुह बाए खड़ी थी ऐसे में स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र के आम जन की आकांक्षाएं बहुत थी जिसे तत्काल पूर्ण कर पाना शासन के लिए असम्भव था।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शासन ने कृषि आद्योगिक ढांचागत विकास कि मिश्रित अर्थव्यवस्था के आधार पर कार्य करना शुरू किया भारत जैसे विशाल राष्ट्र में समान विकास को प्रवाहित करना एक चुनौती अब भी है ।
स्वतंत्रता के तत्काल बाद के वर्षों में तो बहुत ही दुष्कर कार्य था जिसके कारण कुछ क्षेत्रों विशेषकर आदिवासियों को ऐसा प्रतीत हुआ कि उनकी उपेक्षा हो रही है एक तो जनजातीय जन जीवन कठिन परम्पराए विकास की मुख्य धारा से जुड़ने में कुछ समय ने आदिवासियों में शासन एव राष्ट्र की नियत के प्रति संसय को जन्म दे दिया।
परिणाम स्वरूप ऐसे अवसर की तलाश में कुछ राजनीतिक विचारधाराओं ने भोले भाले आदिवासी समाज को दिग्भ्रमित कर दिया और आदिवासी क्षेत्रों में हिंदुस्तानी से आदिवासियों को दूर करते घृणा भरने का कार्य किया जो वास्तव में नई नई समस्याओं को जन्म देने लगा।
बस्तर एव आस पास के क्षेत्र भी सम्मिलित थे सुखमा दंतेवाडा आदि क्षेत्रो में महत्वपूर्ण परिवर्तन दिखने लगे जिससे भोले भाले आदिवासी समाज को ग्रसित कर लिया ।
कहानी है बस्तर एव आस पास के आदिवासी समाज की
जहाँ आदिवासी बाहुल्यता है और शिक्षा स्वास्थ की बुनियादी सुविधाओं को पहुंचाने एव आदिवासियों के समन्वयक विकास के लिए सरकार पूरी तरह से तत्परता से कार्य कर रही थी।
सरकार कोई भी हो उसका मूल उद्देश्य जन आकांक्षाओ की पूर्ति करना ही होता है विकास की प्रक्रिया के परिणामो से अवगत कुंछ राजनीतिक विचार धाराएं येन केन प्रकारेण समाज की मुख्य धारा से जुड़ते समाज को विकास की धारा से विभक्त करता है जो शासन समय समाज राष्ट्र सभी के लिए खतरनाक परिणाम देते है।
बस्तर सुखमा दंतेवाड़ा आदिवासी क्षेत्रो से किशोर जिनकी भावनाएं कमजोर एव अधिक भावुक होती है एव उन्हें किसी भी दिशा में थोड़ी बहुत संवेदनाओं की अवनि पर मोड़ा जा सकता है अचानक लापता होने लगे आदिवासी समाज मे घुम्मकड़ प्रकृति के लोंगो की बहुलता है अतः अपने समाज के किशोरों के लापता होने से आदिवासी समाज चिंतित विल्कुल नही था उंसे अपनी परंपरागत संस्कृति पर भरोसा था उंसे लगता था कि उसके किशोर देर सबेर लौट कर आएंगे ही बच्चे बच्चे ही होते है लापता होने वालों में बच्चों की संख्या बहुत थी किशोर भी थे जब एक साथ बहुत से बच्चे गायब होना शुरू हुए तब आदिवासी समाज का माथा ठनका की उनके अभेद्य वन प्रदेश जो फौलादी दुर्ग की तरह है कौन आ गया ।
जो बच्चे या किशोर लापता होते उनका कही पता नही चलता और ना ही ना ही जिंदा मुर्दा होने के कोई साक्ष्य मिलते अतः आदिवासी समाज का चिंतित होना स्वाभविक था आदिवासी समाज की चिंता का कोई समाधान नही निकल पा रहा था और बस्तर की भौगोलिक स्थिति भी ऐसी थी कि वही जन्मा व्यक्ति जीवन भर वहां के रहस्यमय गुफाओं एव दुर्गम पहाड़ी इलाकों के विषय मे पूर्णता को जानकारी रख सके सम्भव नही था फिर भी आदिवासी समाज ने अपने पराक्रम उपलब्ध संसाधनों में अपने बच्चों को जो उनकी भावी पीढ़ी थी खोजने का प्राण पण से कोशिश किया मगर कोई पता बच्चों का नही चल सका।
पहले तो आदिवासी समाज ने इसे सामान्य घटना माना अपनी जब उनके सब्र का बांध टूटा तब उन्होंने अपने उपलब्ध संसाधनों के आधार पर स्वयं अपने बच्चों को खोजने का प्रायास किया यह वह दौर था जब नक्सल आंदोलन अपने भारत मे जन्म स्थान में समाप्त हो नए जमीन की तलाश कर रहा था ।
आदिवासी बच्चों के गायब होने की जानकारियां बस्तर प्रशासन को भी हुई प्रशासन ने भी बहुत प्रायास किये मगर हाथ कुछ भी नही लगा लगभग दस वर्षों से नियमित रूप से बच्चे एव किशोरों के लापता होने का शिलशिला जारी था एका एक एक दिन दस वर्ष पूर्व गायब हुए आदिवासी समूह के बच्चे नौजवान एक साथ आदिवासी क्षेत्रों में एक एलान किया बस्तर सुखमा दंतेवाड़ा में किसी भी खाकी वर्दी का प्रवेश वर्जित होगा सभी आदिवासी समाज द्वारा एक निश्चित जो भी उनके पास उपलब्ध है हर माह देना होगा आदिवासी समुदाय का कोई व्यक्ति सरकारी न्यायालय में नही जाएगा जो भी न्याय करना होगा यह युवा समुदाय करेगा जो सामाजिक समानता एव न्याय की लड़ाई लड़ रहा है ।
भारत की सरकार ने आदिवासियों की उपेक्षा की है उन्हें उनके मूल अधिकारों से वंचित रखा है अतः आदिवासी समाज से विगत दस वर्षों में गायब हुए बच्चे जो अब युवा है या किशोर है सामाजिक समानता के संग्राम के संखनाद करते है।
आदिवासियों के लापता बच्चों में सुरेश ,भीमा ,कर्मा ,आदि ने एक युवा समूह का गठन करके सामाजिक समानता की लड़ाई को आगे बढ़ने के लिए सभी आदिवासी समूहों की बैठक आहूत किया और एलान किया कि जो नही सम्मिलित होगा उसे समानता के संघर्ष की समिति दण्ड देगी सभी आदिवासी समूह एकत्र हुए सुरेश ने आदिवासी समूहों को समझना शुरू किया –
-हम आदिवासियों ने वन खनिज संपदा का संरक्षण किया है और राष्ट्र के लिये किंतनी ही कुर्बानियां दी है अब सरकार हम लोंगो को इंसान मानने को ही तैयार नही खनिज संपदा एव जंगलों से अरबो रुपये सरकार कमाती है लेकिन आदिवासी विकास पर कोई ध्यान नही देती है हम लोग अपने अधिकारों की लड़ाई स्वय लड़ेंगे और अपना हक जो मांगने से अभी तक नही मिला उंसे शक्ति से छीन लेंगे ।
सुरेश के बाद भीमा ने कहा हम कल के बच्चे आज युवा किशोर है और अपने हक को समझते हैं बच्चे ही किसी समाज के भावी पीढ़ी के निर्माता होते है हम लोंगो ने अपने आदि वासी समाज के विकास एव सामाजिक आर्थिक समानता के बुनियादी हक को छीन कर लेंगे ।
अब आदिवासी समाज सरकार के किसी नियम कानून को नही मानेगा जो भी मानेगा या तरफदारी करेगा उसे जिंदगी से हाथ थोना पड़ेगा हमारी यह ब्रिगेड जो भी करना होगा वही करेगा न्याय अन्याय।
सबसे पहले सरकार के वन सम्बंधित मुलाजीमो का वन क्षेत्र में आना जाना बंद एव सरकारी मुलाजिम जहां भी दिखे उन्हें सजा दी जाएगी वह भी मृत्यु दंड कर्मा ने कहा यही समय की आवश्यकता है और हमारे पराक्रम का बोध हम बच्चे जिसे आदिवासी समाज ने बड़े आशाओं एव उम्मीदों से जना है अब अपने समाज के सम्मान अधिकार के लिए युद्ध की घोषणा करते है और जो भी बच्चे आदिवासी समाज के है उन्हें आप लोग हम लोंगो के हवाले कर दे हम उनको पत्थर दिल से संवेदनशील एव अधिकारों के प्रति सजग योध्दा बनायेगे ।
कहते है बच्चे जो भविष्य की बुनियाद होते है कि दिशा दृष्टिकोण से सांमजिक जागरण के अध्याय का शुभरम्भ होता है हुआ भी यही आदिवासी समाज के बच्चे भारत के समाज के मुख्य धारा के विरोधी स्वर बनकर नई पीढ़ी के रूप में आये ।
बस्तर के जंगलों से सबसे पहले समाजिक समानता के युवा ब्रिगेड ने वन अधिकारियों कर्मचारियों को ही वनों से खदेड़ दिया जो नही भागा वह बचा नही प्रशासन के पैर के नीचे से जमीन खिसक गई जब उन्हें पता चला कि माँ भारतीय के बीर सपूत भारतीयता के अभिमान आदिवासी समाज मे असंतोष के कारण बगावत और हिंसा का मार्ग अपना लिया है।
आदिवासियों की सांमजिक न्याय की लड़ाई के ब्रिगेड सदस्यों ने आतंक मचाना शुरू कर दिया सरकार ने त्रिस्तरीय कार्ययोजनाओं को शुरू किया विकास के अन्तर्गरत शिक्षा स्वास्थ सांचार परिवहन आदि मूलभूत ढांचे के विकास पर तेजी से कार्य प्रारम्भ किया और सामाजिक स्तर पर आदिवासी समूहों से सकारात्मक सोच को विकसित कर बच्चों में भारत की राष्ट्रीय भवना आदिवासी समाज के प्रति चिंता एव संवेदना से परिचित कराने का कार्य शुरू किया साथ ही साथ सुरक्षा की चाक चौबंद व्यवस्था के लिए अर्ध सैनिक बलो एव पुलिस बल को नियुक्त किया लेकिन स्थिति भयावह और नियंत्रण से बाहर हो चुकी थी।
विराज जो सेना के पूर्व अधिकारी थे और बहुत विपरीत एव दुर्गम क्षेत्रो में भी अपनी सूझ बूझ का परिचय दे चुके थे उन्हें पता था लोहा लोहे से कटता है ।
अतः उन्होंने आदिवासी सहकारी समिति एव आदिवासी कल्याण परिषद को बस्तर सुकमा दंडवाडा के आदिवासियों क्षेत्रो में गुप्त मिशन के लिए भेजने का निर्णय किया इसके लिये उन्होंने पांच सौ आदिवासी बच्चों को जो आदिवासी परम्पराओ संस्कृतियो परिवेश परिस्थितियों से भिज्ञ थे का पांच समूह तैयार किया जिसका नेतृत्व स्वय उन्होंने संभाला और पत्नी तांन्या के साथ निकल पड़े माँ भारती की ममता मिशन अपना दिल्ली का आवास बेटे तरुण के हवाले करके निकल पड़े बस्तर ।
बस्तर सुकमा दंडवाडा की स्थिति बहुत भयाक्रांत कर देने वाली थी जंगलों के बीच से कोई वाहन नही गुजर सकता था कोई व्यक्ति घूमने की नियत से भी नही जा सकता था ।
विराज एव तांन्या ने बस्तर के जंगलों से कुछ दूरी पर ही एक डिस्पेंसरी खोली जो डॉ तांन्या के देख रेख में शुरू हुआ विराज सही समय का इंतजार करने लगे कहते है बहुत सी समस्याओं का समाधान समय स्वय दे देता है।
विराज ने सभी सरकारी मुलाजीमो से विनम्र निवेदन कर रखा था कि उनके क्लिनिक पर पुलिस ,अर्धसैनिक बलों वन विभाग के कर्मचारियों की चिकित्सा नही होगी अपनी मंशा को उन्होंने दिल्ली प्रशासन के माध्यम से मध्यप्रदेश सरकार एव बस्तर प्रशासन को बता दिया था जिसके कारण उनकी क्लिनिक पर सिर्फ गरीबो की ही चिकित्सा होगी नाम भी उन्होंने रखा था गरीब क्लिनिक और उनकी क्लिनिक पर वे ही लोग आते जिनके पास इलाज के लिए पर्याप्त धन नही रहता या धनाभाव रहता जो भी आता डॉ तांन्या बहुत अपनेपन से इलाज करती जब वह लौट कर जाता तो मुक्त कंठ से डॉ तांन्या विराज की प्रशंसा करता।
एक ही वर्ष में डॉ तान्या एव विराज के नेक कार्यो की महक घने जंगलों में भी पहुँच गयी।
डॉ तांन्या ने एक दिन तंग आकर विराज से कहा की विराज तुम्हे किस बात की कमी है कि तुम इतने जोखिम उठा कर अपना पैसा बेटे की आय मेरी आय का बहुत सारा हिस्से को एव दर दर भीख मांगने जैसे लोंगो के सामने सरकार के सामने हाथ फैलाते हो और समाज के कल्याण के लिए वो सब करते हो जो किसी की सोच कल्पना से परे हो और आदिवासी कल्याण हेतु ऐसे कार्य करते हो जो उनके अपने पिता भी ना कर पाते हो तुम्हारी समाज कल्याण की आदतों से मै तंग आ चुकी हूँ ।
पत्नी तांन्या ने इतने रूखे एवं तल्ख शब्दो का प्रयोग पहली बार किया था जिसने विराज को झकझोर कर रख दिया उसने बड़े विनम्रता से पत्नी तांन्या को अपने बचपन कि सच्चाई से अवगत कराया -विराज ने बताया कि जब वह पैदा ही हुआ था तब उसके पिता ने उसकी माँ को घर से निकाल दिया कारण मेरे पिता शराब का सेवन बहुत करते थे और बेवजह माँ को प्रताड़ित करते रहते जब मैं पैदा हुआ और महज चार महीने का था तब बापू ने मुझे एक ऐसे दम्पति को बेचने का सौदा कर दिया जो निःसंतान था कारण था बापू की शराब की लत मैं माँ की गोद मे था बापू ने मां की गोद से मुझे छीनने की कोशिश ही किया था कि माँ किसी तरह बापू के चंगुल से खुद को मुक्त कर जंगल से बाहर भागने लगी बापू पीछे पीछे माँ को दौड़ाता रहा पता नही कैसे माँ में इतनी शक्ति आ गयी थी कि बापू जैसे ताकतवर इंसान से आगे भागति रही ज्यो ही मां जंगल के बीच मुख्य सड़क पर पहुंची तेज गति से आती सेना के जीप के नीचे चली गई ।
जीप में बैठा सेना का अधिकारी दयावान था उसने अपनी जीप रोकी और जीप के नीचे दबी माँ को उठाया और देखा कि उसकी गोद मे मैं था जीप के नीचे दबी माँ को देख शायद बापू समझ गया कि कोई पुलिस की जीप है जो उसे पकड़ लेगी वह जंगल मे डर से भाग गया सेना के अधिकारी जैनुल हसन ने मां और मुझे सैन्य अस्पताल लेकर आये मुझे कोई खरोच नही आई थी मगर माँ की हालत गम्भीर थी जैनुल हसन ने पुलिस में दुर्घटना की स्वय रिपोर्ट दर्ज कराई और मुझे अपने घर ले गए माँ का इलाज एक सप्ताह तक चला वह होश में आई आंखे खोली और पुलिस को अपनी टूटी फूटी भाषा मे सच्चाई बताई बयान देने के बाद मां ने जैनुल हसन से मेरी परिवरिश के लिए याचना किया जब वह आश्वस्त हो गयी कि मेरी परिवरिश जैनुल हसन करेंगे तब वह एक दिन बाद स्वर्ग सिधार गयी ।
मैं जौनुल हसन के घर पला बढ़ा जो कट्टर मुसलमान थे लेकिन मुझे उन्होने हिन्दू रीति रिवाजों विशेषकर आदिवासी परम्पराओ में पाला और पढया लिखाया मैं सेना में अधिकारी हुआ और तब हमारी मुलाकात तुमसे हुई तुम्हे हसन साहब के विषय मे तो मालूम है मगर मेरी बचपन की जिंदगी की सच्चाई अब मालूम हुई है क्योंकि जैनुल हसन साहब चाहते थे कि मेरे अतीत के विषय मे कही किसी को ना बताया जाए जैनुल हसन साहब की एक ही बेटी थी नूर जो अब कनाडा में अपने पति के साथ रहती है तुम्हे मालूम है हसन साहब का इंतकाल हो चुका है अब सोचो एक बच्चा जो सिर्फ चार माह का अपनी माँ की गोद मे सड़क पर लावारिस पड़ा हो माँ दम तोड़ रही हो उस समय यदि जैनुल हसन भी माँ के जीप के नीचे दबने के बाद छोड़ कर चले गए होते तो उनका क्या विगड़ जाता जीप सेना कि थी और सेना का ड्राइवर चला रहा था जैनुल साहब का कुछ भी नही होता लेकिन हम सड़क पर लावारिस पड़े रहते या तो मुझे मेरी माँ को जंगली जानवर खा जाते या अराजक तत्व और मैं आज जो हूँ नही होता कही अपराधी के तौर पर भागा फिर रहा होता या जेल की सलाखों के पीछे होता ।
विराज अपनी आप बीती पत्नी को सुना ही रहा था कि एक अधेड़ सा आदमी क्लिनिक के दरवाजे को जोर जोर से खटखटाने लगा विराज और तांन्या क्लिनिक के ऊपर ही रहते थे जल्दी जल्दी नीचे उतर कर आये नीचे आते ही वह खड़ा इंसान बोला कि साहब मेरा नाम विरदो है और मैं जंगलो में रहता हूँ और आदिवासी हूँ मेरी पत्नी की तबीयत बहुत खराब है वह पेट से है आप जल्दी चलो नही तो मर जाएगी डॉ तन्या ने पूछा कहा है तुम्हारी पत्नी विरदो बोला साहब हम लोग खाट पर लादकर उंसे ले आये है वह रही डॉ तांन्या ने देखा कि खाट पर पड़ी एक महिला मरणासन्न है डॉ तांन्या ने उसे क्लिनिक के अंदर लाने का आदेश दिया बिना बिलम्ब किये विरदो एव उसके साथियों ने विरदो की पत्नी भैरवी को क्लिनिक के अंदर ला दिया सबकों बाहर करने के बाद डॉ तांन्या ने भैरवी की जांच किया और बताया कि भैरवी के बचने की उम्मीदें विल्कुल नही है इसे बड़े अस्पताल ले जाओ लेकिन वहाँ तक यह पहुंच पाएगी इसमें भी संदेह है विरदो ने गिड़गिड़ाते हुये डॉ तांन्या से कहा कि यदि यह बड़े अस्पताल पहुंच ही नही पाएगी तब आप ही जितनी कोशिश कर सकती है कोशिश करिए शायद बस्तर की कुलदेवी कि कृपा हो जाय और यह बच जाय।
डॉ तांन्या की क्लिनिक में बहुत उच्च संसाधन तो नही थे फिर भी उन्होने अपनी कोशिश जारी रखी जब विरदो भैरवी को लेकर आया था तब रात्रि के बारह बज रहे थे तीन बजे चुके थे भैरवी की हालत गम्भीर होती जा रही थी डॉ तांन्या ने प्रयास जारी रखा और सुबह सात बजे भैरवी ने एक लड़की को जन्म दिया लड़की के पैदा होते ही भैरवी की हालत में तेजी से सुधार होने लगा एक सप्ताह डॉ तांन्या ने भैरवी को अपने क्लिनिक में रोके रखा वह स्वस्थ हो गयी एक सप्ताह में भैरवी से मिलने आदिवासी महिलाएं और पुरुष दोनों ही आते रहते इस बीच विराज ने आगंतुकों से अच्छा सम्पर्क विकसित कर लिया भैरवी जब क्लिनिक से जाने लगी तब बहुत से आदिवासी पुरूष महिलाएं आयी थी विराज ने उनसे कहा कि आप लोग अपने बच्चों को सही रास्ता दिखाए सामाजिक न्याय की लड़ाई शत्रो से नही शास्त्र से संयम से संकल्प से समर्पण से लड़ी जाती है मैं भी आदिवासी समाज परिवार से ही हूँ और आदिवासियों की मूल भूत समस्या से परिचित हूँ।
विरदो भैरवी एव उनका आदिवासी कुनबा लौटकर गया तो डॉ तांन्या और विराज का मुरीद हो चुका था उनके यश के गुणगान करते नही थकता था अब विराज एव तांन्या भी आदिवासियों के बीच मे जंगलो में निर्बाध आते जाते और उन्हें सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने वाले युवा भी नही बोलते विराज ने अपनी योजना को बस्तर प्रशासन को बता रखा था अतः पुलिस प्रशासन भी उनसे कोई पूंछ ताछ सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ रहे हथियार उठाये आदिवासी बच्चों के बाबत कुछ भी नही पूछता स्थिति यहां तक आ गयी कि पुलिस या अर्धसैनिक बलों के टकराहट में घायल सामाजिक न्याय के लोग डॉ तन्या के पास ही इलाज के लिये आते धीरे धीरे दो ही वर्षो में विराज की ख्याति जंगलो में आदिवासियों के सर्वप्रिय में शुमार हो गयी ।
विराज ने सौ सौ लोंगो की पांच टीम दिल्ली से चलते समय बनाई थी उन्हें तैयार रहने के लिये कहा और समय का इन्तज़ार करने लगें सुरेश की टकराहट पुलिस से हो गई सुरेश कर्मा एव भीमा ने पुलिस एव प्रशासन के सैकड़ो लोंगो को काल कलवित किया था पुलिस को जोरो से तलाश थी और एक दिन पुलिस से टकराव हो गयी प्रशासन से कोई लड़ सके इतनी शक्ति किसी मे नही होती सुरेश के कई साथी मारे गए और सुरेश बुरी तरह घायल हो गया लगभग चार बजे सुबह कुछ नकाब पोश डॉ तांन्या की क्लिनिक पर आए और विराज के साथ तांन्या को ले गए चूंकि आते जाते विराज एव तांन्या के आते सभी से परिचित हो चुके थे अतः निर्भय होकर साथ चल दिये घनघोर जंगलो में एक गुफा के अंदर सुरेश बुरी तरह जख्मी था एव मरणासन्न था ।
डॉ तांन्या ने उसे लगी गोलियों को निकाला और गंभ्भीर सर्जरी किया और उसका इलाज किया दो दिन तक इलाज के बाद जब सुरेश कर्मा और भीमा के साथ सामाजिक न्याय के सशत्र लड़के आये तब विराज ने कहा कि आप लोग कौन सी लड़ाई लड़ रहे है? किससे लड़ रहे है ? क्यो लड़ रहे है ?
यह माटी आपकी है देश आपका है समाज आपका है फिर आप लड़ किससे रहे है ?
आप बच्चे युवा समाज राष्ट्र की धरोहर हो एव भविष्य निर्माण की मजबूत कड़ी हो आप तो जिस डाली पर बैठे हो उसी को काट रहे हो आज तक कोई समस्या नही पैदा हुई जिसका हल ना हो अब तक कोई प्रश्न नही खड़ा हुआ जिसका उत्तर ना हो आप लोंगो को मैं क्या समझा सकता हूँ आप लोंगो को स्वय समझना होगा।
विराज ने माहौल में अपनी बात रखी और चल दिया और दिल्ली से चलने से पूर्व बनाये गए पांच समूहों को बुलाया और दंतेवाड़ा सुकमा और बस्तर के जंगलों के जन जातियों के बीच जागरूकता अभियान चलाने की निर्धारित योजना के अनुसार निर्देशित किया ।
जोखिम बहुत था मगर जोखिम तो प्रत्येक प्राणी के पल प्रहर के जीवन पर हैं पांच सौ स्वय सेवको ने बस्तर आदिवासी सम्भाग के सोच वातावरण परिवर्तित करने के लिए दिन रात एक कर दिया विराज को दिल्ली छोड़े पूरे पांच वर्ष हो चुके थे बस्तर के आदिवासी समाज के सहस्त्र सामाजिक न्याय के अभियान को नैह स्नेह सम्मान एव अभिमान की भावना के जागरण से सकारात्मक दिशा की तरफ मोड़ने में सफलता पाई और सुरेश कर्मा भीमा ने अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण माफी के साथ रोजगार आदि की कुछ शर्तों पर रखी ।
विराज ने बस्तर के प्रशासन से बात किया और राज्य सरकार एव केंद्र सरकार से अनुमति लेकर आत्मसमर्पण एव माफी के साथ साथ मुख्य धारा से कट चुके आदिवासि बच्चों के लिए उनकी आवश्यकता अनुसार एव शिक्षा की व्यवस्था की मांग को पूरा कराया केवल सरकारी वादा नही बल्कि क्रियान्वयन कराया और जंगलो में पुनः आदिवासी संस्कृति संस्कार एव उनके अपने अंदाज़ से रौनक लौटने लगी विराज ने अपने पांच सौ वालेंटियर को बस्तर में शिक्षा स्वस्थ एव अन्य कार्यो के लिये आदिवासी कल्याण परिषद एव आदिवासी सहकारी समिति के सहयोग से नियुक्त कर दिया और भारत के गौरवशाली परम्परा के अनुरूप आदिवासी समाज को उनके बौभव के अनुसार राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ उनके पुनर्वास पुनरुत्थान ,पुनर्स्थापना को गति प्रदान किया।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।