#आ अब लौट चलें
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★ #आ अब लौट चलें ★
संगणक-सी दिन गिनती जाऊं
गिन-गिन लागे ढेर
स्मृति-पेटिका रिक्त है फिर भी
देखो तो इक बेर
बन अभियन्ता आन पधारो
दरीचे करते बैन
सुनो जी ए जी
मेरे दूखन लागे नैन . . . . . !
हाथ में मेरे यह चलभाषी
बूझत है दिन-रात
व्यस्त बतावे राह तुम्हारी
पापी करता घात
किस-किससे बतियाये रहे तुम
कौन तुम्हारा चबैन
सुनो जी ए जी
संपर्क-सूची सुधारो निकतैन . . . . . !
द्रुतचालिनी मेरी साथिन
जैसे तुम मेरे प्राण
चतुष्पथ आरक्षी खड़ा है
खोया मेरा शिरस्त्राण
प्रियतम मिलना कैसे होवे
कैसे सुखी हों नैन
सुनो जी ए जी
वीथि-वीथि जनरव बेचैन . . . . . !
नदी किनारे नासिका जलती
उपवन जले सरीर
विषैली पवन विकास की धाती
विषैला धरती नीर
अंधी दौड़ के अंधे राही
करतब अंधे-चुभीते हैन
सुनो जी ए जी
किस विधि लौेटे वो सुख-चैन . . . . . !
पाती लिखूँ तो भेजूँ कैसे
मृत भये डाक और तार
लकवाग्रस्त हुआ जग सारा
कपोत दिए सब मार
भीजन का सुख कुठार ने छीना
चलता दिन और रैन
सुनो जी ए जी
बरस रहे अब नैन . . . . . !
आगे गहरी खाई दीखे
पीछे कुआँ जलहीन
श्वेत-श्याम नयन सुहावे
बहकावे चित्रपट रंगीन
आ अब लौट चलें रे साथी
मितभाषी मिठबैन
सुनो जी ए जी
अंतरताने सुभग दरसैन. . . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२