आज़ाद गज़ल
इच्छा और शक्ति के बीच जो दुरी है
आम आदमी की एक बड़ी मजबुरी है ।
बीवी-बच्चे व स्वयं की मांगे हैं अथाह
और विचारे की थोड़ी सी ही मजूरी है।
खुद्कुशी ख्वाबों की तो तय हैं मंज़िल
दफन हसरतोँ का होना भी ज़रूरी है।
चैन की सांस और आराम की ज़िंदगी
अजी वो तो जैसे कोई मृग कस्तुरी है ।
तुम भी अकेले क्या कर लोगे अजय
तुम्हारी भी तो कुछ अपनी मजबुरी है ।
-अजय प्रसाद