आज़ाद गज़ल
माना मै तेरी नफरत का भी हक़दार नहीं
मगर ऐसा कहाँ कि मुझे तुझसे प्यार नहीं ।
ये अलग बात है कि वो हैसीयत नहीं मेरी
मगर ये कैसे कह दूँ मै तेरा तलबगार नहीं ।
मैने सपनों का एक महल किया था खड़ा
थी मेरी ये सबसे बड़ी भूल ,इनकार नहीं ।
मना तो लिया है खुद को मगर क्या करूँ
दिल जो है मेरी तरह हुआ समझदार नहीं ।
बदल सकता नहीं मेरी चाहत का मज़मून
मोहब्बत है मेरी कोई वादा-ए-सरकार नहीं
-अजय प्रसाद