आज़ाद गज़ल
कवि बनने की जो होड़ है
जज़्बा ये बहुत बेजोड़ है ।
मर्ज़ है लाइलाज़ ये दोस्तों
दवा है और न कोई तोड़ है ।
जब तक न सुना दें दो चार
रहता पेट में इनके मरोड़ है ।
अब तो हैं अनगिनत मंच भी
जहाँ कवियों की होती दौड़ है ।
लगता है आई मेरी बारी भी
मुझे भी सुनाने ताबड़तोड़ है
-अजय प्रसाद