आज़ाद गज़ल
कवि सम्मेलनों और मुशायरों की भरमार है
कोरोना काल में बेहद खुश साहित्यकार है।
कभी है ऑनलाइन तो है कभी ऑफ़ लाईन
सुबहो-शाम,रात और दिन काफ़ी गुलज़ार है।
हरेक मुद्दे पर कलम चलाते हैं तलवारों जैसे
हर मुद्दा इनके कलम का बेहद तलबगार है।
ऐडमिन,मॉडरेटर,संचालक या हो प्रतिभागी
हर बंदा सुनने कम पर सुनाने को बेकरार है।
तालियों में लाइक्स औ तारीफों में कमेन्ट्स
साहित्य में लेन देन का अच्छा करोबार है ।
तू क्यों इतना खफा है अजय इन लोगों से
तुझे भी तो दावते सुखन का ही इन्तज़ार है ।
-अजय प्रसाद