आज़ाद गज़ल
जाने माने शायर उस्ताद राहत इंदौरी साहब की
एक लाइन पे एक ज़ुर्रत की है गुस्ताखि माफ़ करें
बुलाती है तो जाने का भई
मगर उसे अपनाने का नई ।
भले बला की हो खूबसूरत
पर दिल में बसाने का नई ।
लाख करें इज़्हारे इश्क़ वो
यार ज्यादा इतराने का नई ।
हुस्न जब कभी मेहरबाँ हो
इश्क़ में जाँ गंवाने का नई ।
आशिक़ी में मजनूँ के जैसा
खुद को यूँ मिटाने का नई ।
अजय अब चुप हो जा तू
बेवजह यूँ चिल्लाने का नई
-अजय प्रसाद