आज़ाद गज़ल
शक़ मेरा यकीन में बदल गया
जाहिल जब ज़हीन में ढल गया ।
आ ही गई जनता वश में आखिर
जादू सियासत का जो चल गया।
कमाल है ये रुतवा-ए-शोहरत का
खोटा सिक्का भी आज चल गया।
कौन सोंचता है जाकर बुलंदी पे
किन राहों पे वो किसे कुचल गया ।
फायदा क्या है अजय पछताने का
मौका ही जब हाथ से निकल गया।
-अजय प्रसाद