आज़ाद गज़ल
गड़े हुए मुर्दे,यारों उखाड़ रहा हूँ
पढ़ कर पुराने खत फाड़ रहा हूँ ।
कहीं कोई कमी न रहे भुलाने में
यादों के चमन को उजाड़ रहा हूँ।
हूँ तो मैं खफ़ा खुद से ही मगर
बेबज़ह बच्चों पे दहाड़ रहा हूँ।
सादगी ने मेरा किया सत्यानाश
निकलेगा चुहा,खोद पहाड़ रहा हूँ ।
किसी काम आया न जब अजय
बिक गया जैसे, मैं कबाड़ रहा हूँ
-अजय प्रसाद