आज़ाद गज़ल
‘वो’ जिनके नाम से शायरीयाँ सुनाते हो
क्या सचमुच तुम इतना प्यार जताते हो।
प्यार कभी शब्दों में वयां होता है क्या
फ़िर क्योंकर भला खुद पर इतराते हो।
तारीफ़ तन-बदन तक सीमित रहता है
तो रिश्ता रूह का है क्यों बतलाते हो ।
फिदा हो जाते हो उसकी अदाओं पर
खुबसूरती पे ही उसके तुम मर जाते हो।
हक़ीक़त है कि तुम्हें प्रेम हुआ ही नहीं
बस दैहिक आकर्षण में उलझ जाते हो ।
अव्यक्त प्रेम सर्बोत्तम है जान लो तुम
जिसे बिना अभिव्यक्ति के ही निभाते हो ।
-अजय प्रसाद