आज़ाद गज़ल
चाहता जो हूँ मै वो ,कह पाया कहाँ
वो असर मेरे। सुखन में ,आया कहाँ ।
आप कहतें हैं तो शायद ,उम्दा ही हो
मेरे माफिक मैं अभी लिख पाया कहाँ ।
सोई है जनता जो गफ़लत की नींद में
ठीक से अब तक जगा, मैं पाया कहाँ
सिर्फ़ तन को ही नहीं , मन भी दे हिला
वो। तलातुम मैं अभी। ला पाया कहाँ ।
है अभी बेहद कमी तुझमे भी अजय
वो वज़न शेरों में भी है आया कहाँ
-अजय प्रसाद