आज़ाद गज़ल
चलिये अब हम सब कुछ नया करें
जो भी हैं बुरे उन्हें ही अच्छा कहें।
जब जेहन में जहालत भरी हो तो
क्या फर्क पड़ता है किसे क्या कहें ।
तोड़तें हैं चौराहों पर लगी प्रतिमाएं
और महापुरुषोँ को भला बुरा कहें।
भूल कर सारी इंसानियत की हदें
ज़ुल्म हैवानियत की बढ़ा चढ़ा कहें।
घोट देँ सच का गला अपने हाथों से
फ़िर लाश बनके साथ चुपचाप रहें ।
तू अजय फिर क्यों सोंच में पड़ गया
अपने कलम से कह दो अपनी हद में रहें
-अजय प्रसाद