आज़ाद गज़ल
शायरी आजकल हो बेहद पशेमा रही है
शायरों को वो दिन-रात आजमा रही है ।
ग़ालिब गुस्से में हैं और हैं खफ़ा ज़फर भी
क्योंकि नई पीढ़ी जो उनको भुला रही है ।
बे-बहर गजलें और वाह वाही की फ़सलें
मीर,मोमिन,दागओअदम को चिढ़ा रही है ।
कैफ़ी और दुष्यंत दूर से हैं बिलबिलाते
शायरी उनकी उनसे ही मुहँ फूला रही है ।
अव्वल दर्जे के अहमक हो अजय तुम भी
खुद ये गज़ल ही तुम्हारी खिल्ली उड़ा रही है।
-अजय प्रसाद