“आज़ादी”
“आधी रात की आज़ादी की,
सुबह अभी तक मिली नही थी,
दीवारें कई बार हिली,
बुनियादें अब तक हिली नहीं थीं ,
गोरों की गुलामी से निकले तो,
कुछ दीमक ऐसे लिपट गये,
समझ सके ना अर्थ आज़ादी का,
ये शब्दों तक ही सिमट गये थे,
दोष नही था गैरो का,
अपनों से भारत हार गया था,
आज़ादी की खुशियों को ,
बँटवारा ही मार गया था,
मख़मल पर जो बैठे थे,
वो कब फूलो के पार गये?
जिस देशभक्त ने लहू बहाया,
वो मरघट के संसार गये,
तामस बढ़ता जाता था,
नित दिन ही धकेल प्रभा को,
सत्ता की कुर्सी ने रौंदा,
जाने कितनी प्रतिभा को,
ईमानदारों का जीना मुश्किल था,
बेईमानों के बोलबाले थे,
दोनों हाथों से घोटाले में,
लिपटे जीजा साले थे,
उस पेड़ की जड़ को काट रहे थे,
जिसकी डाली पर बैठे थे,
ईमान बहाकर नाली में,
करतूतें काली कर बैठे थे,
गंगा की पावन धरती पर,
धर्मों का ढोंग रचाते थे,
कुछ वोटो,नोटों की खातिर,
दंगे फ़साद करवाते थे,
भाई को भाई से आपस में लड़वाते थे,
किस्मत की दुहाई देते थे,
तक़दीर की चर्चा करते थे,
उन्हें लाल कहें या दलाल कहें,
जो भारत माँ को बेचा करते थे,
वीर शहीदों की कुर्बानी,
का नेता मोल लगाते थे,
सेंक चिताओं पर रोटी,
राजनैतिक भूख मिटाते थे,
कैसी आज़ादी संतानें ,
भूखे नंगे सोती थीं,
देख विवशता भारत माता,
सिसक-सिसक के रोती थीं,
कुछ तलवारें सोयीं थी,
तब भी बंद म्यानों में,
उलझे थे हम जाति -धर्म,
गीता और कुऱानो में,
मोदी जी के गुजरात का मॉडल,
हम सबको भाया,
ना बंदूक उठायी हमने,
ना तलवार चलाया,
मतदाता की ताकत क्या है,
गद्दारो को दिखलाया,
नयी किरण के साथ,
परिवर्तन की बारी आयी है,
एक कड़क चाय की प्याली ने,
सबकी नींद उड़ायी है,
सीख लिया लड़ने का तरीका,
अब असली आजादी पायेंगे,
भारत के उजड़े चमन को,
मिलकर साथ सजायेंगे,
जिसने हमको बहकाया था,
उसको सबक सीखा देंगे,
निज राष्ट्र की रक्षा में हम,
अपना सर्वस्व लूटा देंगे,
धरती माँ के सीने पर,
अब कोई वार नही होगा,
हिंदुस्तान का मातम में,
कोई त्योहार नही होगा,
चोरी घूसखोरी का,
अब बाज़ार नहीं होगा,
वीरों की धरती भारत में ,
भ्रस्टाचार नही होगा “