आज़ादी मुबारक
है हरजा कैफ़ पसरा, कहते आज़ादी की वर्षगाँठ है,
ज़मीन, जमहूरियत, और जत्था इसकी ही सौगात है।
आसमाँ से ख्याले-अवाम तलक फरहरा फहरा रहा,
उन मुश्किलातों के खिलाफ आबाद अपनी बिसात है।
याद कर कुर्बानियाँ, फंदों पर आरास्ता शक्लों को,
कहीं हल्की सी नमी, जन्मा कहीं अनन्त उन्माद है।
तकलीफ के उन दिनों में झेली थी कितनी यातनाएँ,
फख्र है मुल्क को अब कि गुलामी शब्द से निजात है।
सहल नहीं यूँ उतनी भी इस आज़ादी की जिम्मेदारी,
इसके मायनों की समझ और बरक़रारी की मुराद है।