आह मन में
अतीत के अनुभव से मन है इस कदर डरा , कि भविष्य की खुशी से भी डरने लगी।
वर्तमान खुशी पर विश्वास नहीं कि कब खो जाए
खुशी में जीना छोड़ दी कि आदत न हो जाए।
डर के साए में घुट – घुट कर सांस लेना, बस इसी को मान ली हूं मैंने जीना।
हर अच्छाई पर बेशक खुश होना छोड़ दी, रोना- हंसना और अब प्यार जताना छोड़ दी।
किसी और पर क्या ख़ुद पर नहीं है विश्वास, ख़ुद – ही – खुद के साथ न कर लूं घात।
हजार बार सोच कर किसी पर विश्वास होता है, अंत में तोड़ जाता है मेरे हाल पर छोड़ जाता है।
अब तो आंखों ने भी छोड़ दी है मेरा साथ, क्यों लूटाऊं अनमोल मोती ये तो है आम – बात।
चेहरे ने भी मुंह मोड़ लिया, कह दिया मैं क्यों अपना तेज़ खोजें,सब तुने किया।
अब बस कुछ बात शब्द बनकर कागज से लिपट जाती है, बाकी राज, आह मन में ही सिमट जाती है।।*********************संगीता***************