आह और वाह
आह और वाह क्या है ,
बस तकदीर का तमाशा है ।
किसी के दामन में सौगात ,
तो किसी के अश्क बेतहाशा है ।
हीरा हैं या पत्थर ,मालूम नहीं,
मगर उसी ने तो हमें तराशा है ।
गम और खुशी के बीच का सफर ,
एक उम्र जितना लंबा है जरूर ,
मगर इस फासले में एक नशा है ।
“अनु” को फिर भी है कुछ उम्मीद ,
क्योंकि उम्मीद पर कायम ,
यह अलाम सारा है ।