आह..!! एक टीस…………
पोलिंग बुथ पर देख भिखारी को
पुछा लोगों ने जमकर
हाथ फैलाओगे यहाँ भी क्या..?
अपना दुखड़ा रोकर
ठहाके का शोर, स्तब्ध सी आँखें–
भीगी पलकें बेचारे की
फिर भी कटुवचन ना निकला मुख से
थी ये गुहार दुखियारे की
नागरिक हूँ देश का,अधिकार है मुझे भी
वोट देने का सर्वथा हक़दार हूँ मैं भी
रुक गई हँसी–
विनीत होकर बोला भिखारी
हम.तो हालात के मारे हैं—-
कुछ ने तो मतलब से हाथ पसारी
मुख के सामने माइक या हाथ में कटोरा
एक ही बात का सूचक है–
वे वोट के–हम नोट के याचक हैं
हम माँगते—आपकी गुण गाकर
वे माँगते—करनी का ढ़िंढ़ोरा पीटकर
उठे को आसमां–गिरे को जमीं चटवाते हैं
वे हाथ पसारे एक बार—
हम बार-बार दिख जाते हैं
हम बार-बार माँग कर भी–
भरपेट खा नहीं सकते
वे माँगकर एक ही बार–
अटारी महल बनवा डालते हैं
फिर भी—-
आप उन्हीं को माला पहनाते हैं
एक वोट देने को घंटों लाईन में रह जाते हैं
उम्मीद की टकटकी–हाथ पसारे
हम यूँ ही थक जाते हैं
लाईन में लगकर, फिर–
एक नए भिखारी को—
“सत्ता” दे डालते हैं
पर हम जीर्ण-शीर्ण पुराना
कपड़ा”लत्ता”से भी रह जातें हैं………।