((((आहिस्ता आहिस्ता))))
जिसे भी चाहा वो दो कदम पर रस्ता बदल गया,
तारों के रास्ते हो कर चाँद हस्ता निकल गया.
हमें न थी कोई रहमतों की ज़रूरत,बस एक मोहब्बत
की थी किसी अजनबी से,जिसका दीदार ही सस्ता
निकल गया।
बढ़ते रहे जिस राह पर मंज़िल पाने को,वो कदम कदम
पर ही चौरस्ता निकल गया।
सुनते रहे गुलाब की महक है उसमें,हक़ीक़त आयी
सामने तो वो प्लास्टिक का गुलदस्ता निकल गया।
हम तो वो बादशाह निकले जिंदगी के,सब कुछ होते
हुए भी वक़्त खस्ता निकल गया।
ताउम्र बनाते रहे सपने किराये की दुनिया में,बहुत
लगाई बोली महंगी मीनारें खरीदने में,नाजाने कब
सांसों का खजाना हाथ से आहिस्ता आहिस्ता
निकल गया।