आहत ग्रामवासिनी मर्माहत कल !
उम्र बीत गयी ज्यों दासता के तले,
मरकर यों ही ना दु:ख भूलाया कभी ,
मरना , है जीवन की एक दृढ कड़ी
देखा एक मरा है , अभी-अभी !
जीवन की संघर्षों की गाथा सुने बहुत,
भला खुले मन से भूला याद आया कोई,
क्यों याद आयेगा , क्या पड़ी याद करने को
क्या सोचना, है न फालतू! फिर गया है कोई !
पर मैं कहाँ भूल सकता उन्हें,
उजड़ते हर माँ की सिन्दूर-सुहाग,डूबते नन्हे,
अप्रतिम त्याग,और उन अनंत शौर्य को,
उन मधुर चाहतों को ,उनके माधुर्य को !
देश डूब रहा गाँव जल रहा है,
अन्याय और हिंसा खूब चल रहा है ,
छल-प्रपंच का दौर, सत्य ढल रहा है ,
बेबस, लाचार सर्वत्र सत्य रो रहा है !
यहाँ देखते नहीं क्या कितने बली,
हैं बली धन के ,कहाँ चरित्र ? हैं खली;
सूना आज आह लेकर असहायों के,
हाय – हाय , आह लूट लिया है छली !
छद्म आलम्बन सत्य शोधक दीखे,
नीति-न्याय के संवाहक और भी सदय सरीखे
गाँव लूटे ,मिली सब साधु -उद्दण्ड पारीखे,
फटती छाती धरा के, दुखिया धीरज रखे !
रो रही सरीता का निर्मल पावन जल…
रो रहा वृक्ष यों ही हो दु:खित सजल,
पशु-प्राणी आहत , आज ! मर्माहत कल ;
आहत ग्रामवासिनी , फटती छाती विकल !
मर रहे जो सदा, सत्य-पथ के पथी,
दासता में बंधे कितने,कितने लथपथी !
मर जाना तू भी सत्य हेतू हे धर्मरथी ,
विपत्तियों से घिरा ‘आलोक’ है खड़ा सारथी !
ना होना निराश , हताश भी क्यों,
लूट ले तूझे अपने, आक्रांता बन ज्यों ,
मुस्कुरा ! मुस्कुरा !! मुस्कुरा वीर यों ;
है देख प्रतिपल खड़ा भारत-आलोक ज्यों !
हे वीर ह्रदय ,हे सजल सदय,
बोलो भारत माता की जय !
बोलो भारत माता की जय !!!
अखंड भारत अमर रहे !
©
कवि आलोक पाण्डेय