आहट
शहर के कोलाहल से दूर
घनी आबादी से हट के
नीरवता के बीच
रास्ता जो जाता है
मेरे गांव की ओर
गुजरता हूँ जब वहाँ से
सनसनाहट की आवाज आती
चीर कर मुझमें प्रवेश कर जाती है
सोचने को मजबूर मैं
कोलाहल कैसा है
एक दबी सी
आहट छिपी है कोलाहल में
रूदन भरी कसक है
बन करता जा देखूँ
लेकिन अनजान भय समेट
लेता है आगोश में
चल पड़ता हूँ मैं
राह पर अपनी मैं
चला जा रहा मैं
एकाएक वायु वेग से
आ बाँध लिया मुझे किसी ने
बाहुपाश में
मैं बँधता गया
एक आत्म निवेदन था वाणी में
पता नही कोन सी शक्ति
मुझे खींचती जा रही थी
एक मोहिनी थी रूप लावण्य में
जिसके आगे पराधीन हो
नतमस्तक होता जा रहा था
अन्त में दासता
स्वीकार कर उसकी
चल दिया पीछे पीछे
जब कभी सोचता हूँ इस बारे में
तो वहीं पदचाप
वही रूदन
वही निवेदन ला देता
एक मुस्कराहट मुख पर
जो खौफ भरा
डर से भरा होता है
एक विस्मय से
बैचेनी के साथ वही मोहिनी
आ बैठती है मेरे बगल में
सटके
फिर एक हड़बडाहट के साथ
जाग जाता हूँ
मात्र एक सपना समझ के
चुप रह जाता हूँ