आहट
हैं प्रेम राग की ये आहट,
खिलती होठों पर मुस्कराहट।
पी के शब्दों की सुन अंतरध्वनियाँ,
है हरित हुई उर की बगिया।
सुनी हृदय स्पंदन की आहट,
मन हुलसित,उर में अकुलाहट।
जिया मीठी मीठी सी घबराहट,
पिया मिलन की लिए चाहत।
सखी,स्मृतियों की पदचाप सुनूं,
मैं निस दिन अपने वीराने में।
आहत मन की पदचाप-आहट,
सुन, छिपी हृदय के तहखाने में।
अहा! पहले नयनोंसे वाद हुए,
दिल की धड़कन के नाद हुए।
फिर शब्दों के मुग्ध संवाद हुए,
हाय! बाकी थे अनुवाद अभी,
पर प्रेम प्रीत में बर्बाद हुए।
आहट पहले भी आई थी,
सुनकर वो, कुछ शर्माई थी।
उसके आने की आहट से ही,
बागों में खिली अंबराई थी।
यह शब्दों की अंतरध्वनियाँ,
खिलती जिससे मेरी दुनिया।
दिल पर दस्तक जो देती हैं,
मधुस्मृतियों की पदचाप सुनो।
शब्दों की नज़र से ओझल प्यार तुम्हारा,
सुन पाओ तो मुझे भी सुनवाना,
जो कह पाओ तो मुझे भी बतलाना।
जीवन की इस पृष्ठ भूमि पर,
तेरे राग रंग की आवाजें,
जिनकी आहट मैं सुनती हूं।
अब आओगे तब आओगे,
सपनों के धागे बुनती हूं।
नीलम शर्मा