आस
आस
सन्नाटे में पसरा
हर सू कैसा शोर है
चीखता है अंतस
खामोशी चारों ओर है
गूँजती है मौत
हवा आदमखोर है
डट के रहना
इम्तिहानों का दौर है
रब का है साथ
इंसान नही कमज़ोर है
टूटेगी न साँस
ज़िंदा आस का ज़ोर है
कभी तो होगी
इस रात की भी भोर है
वो दिन दूर नही
नाचेगा मन का मोर है
रेखांकन।रेखा