आस बची है थोड़ी, पूरा निराश नही हुँ ,
आस बची है थोड़ी, पूरा निराश नही हुँ ,
हार पाकर भी, मैं हताश नही हुँ |
कुछ भी पाना बहुत कठिन है यहाँ ,
सब कुछ खोकर भी , मैं उदास नही हुँ |
कुछ लोग थे जो हमें पाकर इतराते थे ,
वही कहते है अब, मैं खास नही हुँ |
नजरअंदाज तो कर देते चुभते तानो को ,
पर कैसे मान लूँ , मैं एहसास नही हुँ |
विडंबना ही है ये शायद,
जो सफ़र में होके , सफ़र के साथ नही हुँ |
संघषों में भी जीवन महसूस करना होगा ,
आखिर जिंदा हुँ , लाश नही हुँ ||