आस का सूरज उगे चहुॅ ओर प्राची से उजेरा, नव प्रभाती की किरन से आस का मधुमय सवेरा ।।।
आस का सूरज उगे चहुॅ ओर, प्राची से उजेरा ,
नव प्रभाती की किरन से आस का मधुमय सवेरा ।
लोक गुन्जित हो सकल ,
नव पुष्प तरु फूलें फलें
चहुॅ ओर हो खुशहाल जीवन,
मलिन मुख मण्डल खिलें,
कव रुका है तिमिर दुःसह नित नवल विहान में
तू जगा नव आस औ विश्वास नव सुर तान में
ना रहे जग मे कहीं,
दुख क्लेश औ गम का अन्धेरा,
आस का सूरज उगे चहुॅ ओर प्राची से उजेरा,
नव प्रभाती की किरन से आस का मधुमय सवेरा ।
शक्ति का आभास कर में
है वंधी नव आस उर में,
लाख कांटों का सफर पर,
चल दिखा संघषॅ तेरा,
कम॔योगी को सका कव रोक, ये दुसह अन्धेरा,
और तू गर देख सकता देख,
माग॔ प्रशस्त तेरा,
आज नभ से भी घटेगा,
तिमिर का वादल घनेरा,
आस का सूरज उगे चहुॅ ओर प्राची से उजेरा
नव प्रभाती की किरन से
आस का मधुमय सवेरा ।
अनुराग दीक्षित