आस का पंछी…
बदरा घिर आए सावन आया रे
बिजुरिया चमके है सावन आया रे
ऐसे में सजन तू परदेस में है
सखियां चिढ़ाए मोहे सावन आया रे
बूंदे सावन की तन को भिगोती हैं
बातें तेरी मीठी मन को लुभाती हैं
इस सावन तो आ जाओ प्रियतम
दरस को तेरे अखियां तरसती हैं
बिरहा की ये रातें अब नहीं कटती
तेरे वियोग में अखियां है बरसाती
सावन की झड़ी में कैसे मैं रोकूं
मिलने की इच्छा पल-पल है बढ़ती
झूठ ही कह दो मुझसे कल आऊंगा
जी को तेरे फिर से बहलाऊंगा
जानती हूं मैं भी कि तुम ना आओगे
आस का पंछी बोले शोर मचाऊंगा
आस का पंछी बोले शोर मचाऊंगा…
9.7.2023