‘आस्था’
?आस्था?
आस्था तो सदा,एक प्रेमभाव है।
जिस मन का, ईश्वर से लगाव है।
ये बसे, उस निर्मल मन मंदिर में;
जहां हमेशा , भक्ति का बहाव है।
आस्था में,सदा आदर दिखता है।
लगता,गागर में सागर दिखता है।
ईमानदारी ही,आस्था है कर्म की;
विश्वास से सदा,इसका वास्ता है।
जहां,धैर्य व भरोसा का संगम है।
बसे आस्था, सदा ही उस मन है।
रख आस्था , तुम निष्ठावान बनो;
बिन आस्था, मानव तो निर्मम है।
आस्था-आस्था , चिल्लाते सभी।
आस्था कहीं नहीं, दिखाते कभी।
जिसका,निजधर्म में आस्था नहीं;
उसे कहीं , आस्था न होगा कभी।
माता-पिता में,आस्था रख जरूर।
कभी नहीं आए,तब मन में गुरूर।
जो कोई रखे विश्वास, विधाता में;
भागे उसके सारे संकट उससे दूर।
हे मानव! तुम भी आस्थावान बनो।
दिल में श्रद्धा रख तुम,इंसान बनो।
यही जीवन में,काम आएगा कभी;
तुम भी इस जगत् में , महान बनो।
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#स्वरचित_सह_मौलिक;
……✍️पंकज ‘कर्ण’
……कटिहार(बिहार)।