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20 Sep 2021 · 2 min read

आस्था

हैलो… हैलो रमा

हाॅं दी बोलो

मेरी योग की छात्रा जेनेवा से पहली बार इंडिया जा रही है ।

बनारस भी जाना चाहती है तुम उसको ज़रा मंदिरों में दर्शन करा देना ।

ठीक है दी ।

‘ डियाना ‘ उस योग की छात्रा का यही नाम था ।

खूबसूरत सी अठ्ठाइस/तीस साल की लड़की पहली बार ‘ भारत आने पर बनारस के मंदिरों के दर्शन करना चाहती है ‘ यह सुन मन प्रसन्न हो गया ।

काशी विश्वनाथ की शयन आरती देख ऐसी मंत्रमुग्ध हो गई जैसे सब समझ आ रहा हो… जबकि हिन्दी का एक शब्द नही जानती थी ।
” वापस घर लौटते समय डियाना इंग्लिश में बोली ‘ मुझे लगता है भारत से मेरा रिश्ता पिछले जन्म का है लग ही नही रहा कि पहली बार यहाॅं आईं हूॅं । ”

संकटमोचन मंदिर घर के पास ही था वहाॅं के दर्शन के बाद घर में हम सब खाना खा रहे थे कि दी का विडियो कॉल आ गया ।

” अरे रमा एक बात तो कहना भूल ही गई थी मैं । ”

” क्या बात दी ? ”

” रमा तुम उसको ‘ हनुमान चालीसा ‘ ज़रूर सुना देना । ”

यह सुन ऑंखें चौड़ी हो गई मेरी ।

कुछ देर बाद हम दोनों आमने सामने दरी पर बैठे थे ।

” मैं ‘ हनुमान चालीसा ‘ पढ़ रही थी और डियाना ऑंख बंद कर हाथ जोड़े पद्मासन में बैठी ध्यानमग्न हो सुन रही थी ।”

” तभी मैंने देखा डियाना की ऑंखों से ऑंसू निकल रहे हैं । ”

” अनजान देश , अनजान लोग , अनजान भाषा इन सबके बावजूद उसकी ‘ आस्था ‘ अपनी थी और उसमें रत्तीभर की भी कमी नही थी । ”

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 14/09/2021 )

Language: Hindi
283 Views
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