आस्था
हैलो… हैलो रमा
हाॅं दी बोलो
मेरी योग की छात्रा जेनेवा से पहली बार इंडिया जा रही है ।
बनारस भी जाना चाहती है तुम उसको ज़रा मंदिरों में दर्शन करा देना ।
ठीक है दी ।
‘ डियाना ‘ उस योग की छात्रा का यही नाम था ।
खूबसूरत सी अठ्ठाइस/तीस साल की लड़की पहली बार ‘ भारत आने पर बनारस के मंदिरों के दर्शन करना चाहती है ‘ यह सुन मन प्रसन्न हो गया ।
काशी विश्वनाथ की शयन आरती देख ऐसी मंत्रमुग्ध हो गई जैसे सब समझ आ रहा हो… जबकि हिन्दी का एक शब्द नही जानती थी ।
” वापस घर लौटते समय डियाना इंग्लिश में बोली ‘ मुझे लगता है भारत से मेरा रिश्ता पिछले जन्म का है लग ही नही रहा कि पहली बार यहाॅं आईं हूॅं । ”
संकटमोचन मंदिर घर के पास ही था वहाॅं के दर्शन के बाद घर में हम सब खाना खा रहे थे कि दी का विडियो कॉल आ गया ।
” अरे रमा एक बात तो कहना भूल ही गई थी मैं । ”
” क्या बात दी ? ”
” रमा तुम उसको ‘ हनुमान चालीसा ‘ ज़रूर सुना देना । ”
यह सुन ऑंखें चौड़ी हो गई मेरी ।
कुछ देर बाद हम दोनों आमने सामने दरी पर बैठे थे ।
” मैं ‘ हनुमान चालीसा ‘ पढ़ रही थी और डियाना ऑंख बंद कर हाथ जोड़े पद्मासन में बैठी ध्यानमग्न हो सुन रही थी ।”
” तभी मैंने देखा डियाना की ऑंखों से ऑंसू निकल रहे हैं । ”
” अनजान देश , अनजान लोग , अनजान भाषा इन सबके बावजूद उसकी ‘ आस्था ‘ अपनी थी और उसमें रत्तीभर की भी कमी नही थी । ”
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 14/09/2021 )