Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 May 2021 · 3 min read

आस्था कितनी सार्वभौमिक है..?

आस्तिक का शाब्दिक अर्थ होता है जो व्यक्ति ईस्वर/अल्लाह/यीशु आदि भगवानों में विस्वास रखता हो और नास्तिक का अर्थ होता है जो व्यक्ति इन सभी मे विस्वास ना रखता हो । किन्तु मेरे हिसाब से हर एक धार्मिक आस्तिक व्यक्ति दूसरे धार्मिक आस्तिक व्यक्ति के लिए नास्तिक ही होता है। जैसे जो हिन्दू धर्म के भगवान में विस्वास करता है वह इस्लाम और ईसाई या अन्य धर्मों के भगवान में विस्वास नही करता, अर्थात वह व्यक्ति इन दो शेष धर्मो के लिए नास्तिक है और बिल्कुल इसके विपरीत भी ऐसा ही है। तो इसका मतलब हुआ कि कोई भी व्यक्ति सरभौमिक रूप से आस्तिक और नास्तिक नही है।
किन्तु कुछ दिनों पहले मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा कि कोई भी व्यक्ति अगर अपने धर्म के ईस्वर में विस्वास करता है वह सरभौमिक रूप से आस्तिक होगा किन्तु मैं उसकी इस बात से सहमत नही हूँ क्योकि हिन्दू कहते समस्त ब्रह्मांड ब्रह्मा,विष्णु,महेश ने बनाया , इस्लामी कहते है कि ब्रह्मांड को अल्लाह ने बनाया और ईसाई कहते है कि ब्रह्मांड को गॉड ने बनाया। जब ब्रह्मांड एक ही है और इन सभी की नजरों में उसका बनाने बाला उनका व्यक्तिगत भगवान है तो फिर वही बात सिद्ध हुई कि आप अपने धर्म के भगवान को मानकर दूसरे धर्म के लोगों के लिए नास्तिक हो गए।
एक वार मेरे एक मित्र ने मुझसे पूछा कि क्या तुम नास्तिक हो ,जैसे कि तुम्हारे विचारों से लगता है..?
मैन जबाब दिया कि जो व्यक्ति सभी प्रकार की सामाजिक, जातिगत,और धार्मिक परम्पराओं को ठुकराकर प्रेम विवाह में यकीन रखता है अर्थात प्रेम को सर्वोपरि रखता है ,वह व्यक्ति नास्तिक कैसे हो सकता है..? क्योंकि सभी धर्म अपने अपने भगवान पर भिन्न भिन्न मत होते हुए भी प्रेम पर एक मत है और मैं उसी मत को जीवन मे सर्वोपरि रखता हूँ , तो मैं नास्तिक तो नही हुआ किन्तु सरभौमिक आस्तिक जरूर हुआ हूँ । अगर मैं किसी भी धार्मिक समाज मे अपने इस प्रेम के विचार के साथ रहूंगा तो वो धार्मिक समाज मुझे सायद आसानी से स्वीकार कर ले। हाँ किन्तु अगर मैं सामाजिक धार्मिक कर्मकांड के विचारो के आधार पर नास्तिकता की बात करूं तो शायद मैं हूँ। किन्तु यह विचारधारा मुझे मेरी प्रेम विचारधारा की तरह हर धार्मिक समाज मे स्वीकृति नही दिला सकती।
रही बात भगवान की तो भगवान है क्या.. ? सबसे पहले हमको यही समझना होगा ।
फिर भगवान की जरूरत इंसानों को क्यो हुई..? जबकि जानवरों का कोई भगवान नही होता और वो निश्चिन्त होकर जीवन जीते हैं ,फिर इसको समझना होगा ।
मैं बिल्कुल भी यह नही कहता कि कोई व्यक्ति अपनी आस्था को तोड़े या उसमे अविष्वास जाहिर करें किन्तु यह जरूर कहता हूं कि आस्था को अंधभक्ति और कर्मकांडो का जाल ना बनाओ ,क्योकि आस्था जो दुख दर्द हरती है या शक्ति देती है, वही आस्था दूसरे धर्म के लोगों के लिए नाकारा साबित होती है और इतना नाकारा कि दूसरे धर्म के लोग उस पर मल-मूत्र तक त्याग देते है फिर भी वह उनका बाल बांका नही कर पाती । जबकि हम उससे इतना डरते हैं कि अगर झूठे हाथो से उसके द्वार को छू भी लिया तो कई घरों में मंदिर/मस्जिद/गिरजाघरों में झगड़े तक हो जाते है।
इसलिए जरूरी है कि सभी को अपनी अपनी आस्था और अपने अपने भगवान से सवाल करने चाहिए और उनका जबाब भी काल्पनिक तरीके से नही बल्कि साक्षात रूप में लेना चाहिए और वो भी सरभौमिक सामाजिक इंसानियत और मानवता को ध्यान में रखकर ।
इतना जरूर है ईस्वर विवशता के समय की एक काल्पनिक आश है किंतु इस काल्पनिकता के बदले वह हमसे ही हमारे जीवन को अंधविस्वास में बदलबा देती है ।

Language: Hindi
Tag: लेख
10 Comments · 465 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
View all

You may also like these posts

स्कंदमाता
स्कंदमाता
मधुसूदन गौतम
संस्कार में झुक जाऊं
संस्कार में झुक जाऊं
Ranjeet kumar patre
प्रयागराज में तैयारी के दौरान की गई पनीर पार्टी कभी भुलाई नह
प्रयागराज में तैयारी के दौरान की गई पनीर पार्टी कभी भुलाई नह
Rituraj shivem verma
अपनी भूलों से नहीं,
अपनी भूलों से नहीं,
sushil sarna
रात का सफ़र भी तय कर लिया है,
रात का सफ़र भी तय कर लिया है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
****** मन का मीत  ******
****** मन का मीत ******
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
चन्द्रयान 3
चन्द्रयान 3
Jatashankar Prajapati
पूछा किसी ने..
पूछा किसी ने..
हिमांशु Kulshrestha
आजा मेरे दिल तू , मत जा मुझको छोड़कर
आजा मेरे दिल तू , मत जा मुझको छोड़कर
gurudeenverma198
"बस्तर के मड़ई-मेले"
Dr. Kishan tandon kranti
'वर्क -ए - ' लिख दिया है नाम के आगे सबके
'वर्क -ए - ' लिख दिया है नाम के आगे सबके
सिद्धार्थ गोरखपुरी
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
इस नदी की जवानी गिरवी है
इस नदी की जवानी गिरवी है
Sandeep Thakur
अतिथि देवोभवः
अतिथि देवोभवः
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
मोबाइल फोन
मोबाइल फोन
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
लावारिस
लावारिस
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
बच्चों का मेला
बच्चों का मेला
अरशद रसूल बदायूंनी
*चांद नहीं मेरा महबूब*
*चांद नहीं मेरा महबूब*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
इठलाते गम पता नहीं क्यों मुझे और मेरी जिंदगी को ठेस पहुचाने
इठलाते गम पता नहीं क्यों मुझे और मेरी जिंदगी को ठेस पहुचाने
Chaahat
ये ढलती शाम है जो, रुमानी और होगी।
ये ढलती शाम है जो, रुमानी और होगी।
सत्य कुमार प्रेमी
घनाक्षरी
घनाक्षरी
surenderpal vaidya
चाय पीने से पिलाने से नहीं होता है
चाय पीने से पिलाने से नहीं होता है
Manoj Mahato
मैं मेरा घर मेरा मकान एक सोच
मैं मेरा घर मेरा मकान एक सोच
Nitin Kulkarni
When you learn to view life
When you learn to view life
पूर्वार्थ
23/40.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/40.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Kp
Kp
Aasukavi-K.P.S. Chouhan"guru"Aarju"Sabras Kavi
प्रकृति की चेतावनी
प्रकृति की चेतावनी
Indu Nandal
"" *आओ गीता पढ़ें* ""
सुनीलानंद महंत
वो पेड़ को पकड़ कर जब डाली को मोड़ेगा
वो पेड़ को पकड़ कर जब डाली को मोड़ेगा
Keshav kishor Kumar
#सारे_नाते_स्वार्थ_के 😢
#सारे_नाते_स्वार्थ_के 😢
*प्रणय*
Loading...