आस्था और विश्वास का महा पर्व – छठ पूजा
हमारे देश में क्षेत्र की अनुसार बहुत से पर्व – त्योहार है, और हम लोग इसको ख़ुशी और प्रसन्त्ता के साथ मानते आ रहे हैं। सनातन धर्म यानी प्रकृति से जुड़ कर मानव अपनी ख़ुशी बाँट सके, ऐसा त्योहार बनाया गया है!
सनातन धर्म की ये अच्छाई है की इसमें कोई त्योहार हो, समाज का हर वर्ग को शामिल होना होता है और होते है।
ऐसे में भारत की पूर्वांचल के भाग में भगवान भास्कर की पूजा का प्रचलन है, यह एक ऐसा पर्व है, जिसमें भगवान सूर्य के दोनो अवस्था की पूजा होती है, साधारण भाषा में अस्त और उदय होते हुए भी।
ऐसा देखने के बहुत कम देखने को मिलता है की, आप इस समाज में किसी दोनो ही परिस्थतियों में आराधना कर रहे हो। यह एक उदाहरण है, की मनुष्य को दोनो ही परिस्थितीयों में एक समान रह कर आराधना और सेवा करना चाहिए।
महापर्व छठ, एक ऐसा ही पर्व है जिसमें आपको प्रथम दिन से ही, समाज में एकजुट और संस्कार का संदेश देता है।
प्रथम दिन ” नहाय – खाय” से प्रारम्भ होता है, जिसमें पूरा गाँव, मुहल्ला, गली, घर द्वार, सभी को पूरी तरह से साफ़ और धोया जाता है, ये महापर्व पूरी तरह से प्रकृति से जुड़ा हुआ है, हर संदेश प्रकृति पर आक रुक जाती है।
नदी ,तालाब या कुओं से लाए पानी द्वारा स्नान किया जाता है।समाज का पूरा वर्ग इसमें शामिल होता है, एक जुट होकर स्व्छ्ता का ध्यान करते हैं।
द्वितीय दिन “खरना” , इस दिन शाम को भगवान भास्कर और कुल देवी -देवता, ग्राम देवी और देवता का पूजन होता है। खरना में जो द्रव्य बनते हैं, वो पूरी तरह से स्वछ और पवित्र होते है, मिट्टी के पात्रों से बने, गंगा जल और नदी, तालाब के जल से पहले बनाया जाता था, लेकिन शायद अब ऐसा सम्भव नहीं है, क्यूँ तालाब, नदी , कुओं की जो हालत है, ऐसे इसको चलन में नहीं लाते हैं।
तृतीय दिन, अस्ताचल गामी श्री भास्कर भगवान की पूजा होती है, जहां पर घाट का निर्माण हुआ है, नदी, तालाब जैसे स्थान पर पूजा की जाती है। आज कल शहरों में अपने घर के छत पर ही एक छोटा सा तालाब बना कर या सॉसाययटी के स्विमिंग पुल में कर लेते है।
चतुर्थ दिन, उदयागमि भगवान भास्कर की पूजा होती है, इसमें भी घाट पर जाकर इनकी पूजा होती है।
प्रसाद के रूप में विशेषत: ठकुआ जो गेहूं और शकर से बनाया जाता है, प्रयोग में किया जाता है। इसके अलवा ऋतुओं के अनुसार जो फल और फूल, बाज़ार में या खेत में उपलब्ध है, उसको पूजा में लाया जाता है।
इन चार दिनो के महापर्व में आपको सीधे सीधे प्रकृति से जुड़ने और समाज में सामंजस्य का संयोग मिलेगा।
समाज के हर वर्ग महापर्व की पूजा करते है, चाहे वो कोई भी हो। समाज के हर वर्ग इसमें शामिल होते है, खेत से लेकर, मिट्टी के वर्तन, यह साफ़ सफ़ाई हो, अनाज से फल फूल सभी को इनमे योगदान होता है।
और हाँ, इसमें लोक गीत का बहुत योगदान है, आपको या कर्ण प्रिय के साथ आपको अपनी मिट्टी का भी अहसास दिलाएँगे।