आस्था और चुनौती
जैसा की आज हर इंसान जानता है, कि हमारे देश का कांवड़ का मेला समाप्त हो चुका है, एक से बढ़कर एक कांवडिआ अपनी समर्थ से ज्यादा का प्रदर्शन कर चुका है ! सब ने अपनी मेहनत से ज्यादा , अपनी जेब से ज्यादा से ज्यादा खर्च किया, ताकि भगवान् भोलेनाथ जी उनकी मनोकामना पूरी करें , और मैं भी उन सभी कांवड़ लाने वाले भाई , बहन के प्रति ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ , कि जिस की जैसी भावना थी, उस के हिसाब से उस को भगवान् भोले शंकर जी का आशीर्वाद प्राप्त हो !
परन्तु यहाँ एक सोचने का प्रश्न यह आ जाता है, कि यह आस्था में चुनौती का प्रदर्शन क्यूँ किया जाता है ? क्या भोलेनाथ जी के सामने कोई भी कांवड़िया चुनौती दे सकता है ? क्या आज का कांवड़िया भोलेनाथ जी से बढ़कर सामर्थय रखता है ? क्या इस तरह के प्रदर्शन से भोलेनाथ जी आप से ज्यादा प्रसन्न होकर कुछ स्पेशल वरदान दे देंगे ? ऐसा नहीं है, भाव देखते हैं भगवान् और कुछ नहीं देखते !
कांवड़ में दुखद भरी जो ख़बरें हम सब के सामने आयी, वो इसी का परिणाम थी, जब सरकार की तरफ से सीमा तय की गयी थी , तो क्यूँ कांवड़ को ऊँचा बनाकर, या ज्यादा से ज्यादा जल को अपने कंधे पर उठा कर शक्ति प्रदर्शन कर रहे थे, यह कैसी आस्था थी, यह कैसा जनून था, न जाने कितने घरों के चिराग उनके घर वालों के सामने बुझ गए, कोई गंगा में बह गया, कोई बिजली के तारों से अपनी जान गवा बैठा, कोई दुर्घटना में भगवान् को प्यारा हो गया, किसी की गाडी में आग लग गयी, यदि देखा जाए तो जिस के नाम की कांवड़ लाई जा रही है, उस के सामने इस कलियुगी इंसान की ताकत शून्य है, भगवान् के सामने हम सब लोग कुछ भी नहीं हैं, ऐसी चीजों को उस परमात्मा के सामने प्रदर्शित भी नहीं करना चाहिए !
कांवड़ लाने वाला भोला या भोली इस कदर गुस्साए हुए चलते है, कि आम-जन का निकलना भी सड़क से भारी है, अगर गलती से उनकी कांवड़ को छू भी लिया तो जमीन-आसमान एक कर देते है, उसका ताजा उदाहरण हम सब ने देखा, कि कैसे एक बुजुर्ग दंपत्ति की कार में जी भर के तोड़फोड़ की गयी, उस दम्पति पर भी हमला किया गया, यह सब कैसी आस्था है, क्या प्रदर्शित करने के लिए कांवड़ को उठाते हो, अगर इतना ही डाक कांवड़ में दौड़ कर दूरी तय करने का शौंक दिखा सकते हो, तो देश के लिए क्यूँ नहीं दौड़ा जाता, फ़ौज में यही दौड़ दिखाओ, वहां पर यह प्रदर्शन क्यूँ फीका पड़ जाता है !
इसी बीच हमारे समाज के व्यापारी लोग भी जगह जगह भंडारे लगाकर कांवड़ लाने वालों को प्रोत्साहित करते है, उनके लिए मैडल, ट्राफी – (शील्ड) का भरपूर इंतजाम करते है, तरह तरह के पकवान उनके लिए बनाये जाते है, हर कोई उनकी सेवा में लगकर पुण्य कमाना चाहता है, सत्य तो यह है, कि हरिद्वार से लेकर दिल्ली तक , या हरिद्वार से लेकर हरियाणा तक, उत्तर प्रदेश के जिलों तक जगह जगह ढाबे बने हुए है, अगर सच्चे मन से कांवड़ लाई जाए तो इन ढाबों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है, परन्तु ज्यादातर भडारे में खाना खा कर अपने सर पर पाप का बोझ और बढ़ा लेते है ! बाबा अमरनाथ जी जैसी जगह पर भंडारा चलता अच्छा लगता है, क्यूंकि वहां पर रास्ते में कोई ढाबा , चाय का स्टाल नजर नहीं आता, पर जहाँ पर नजर आता है, वहां का सुलभ इस्तेमाल करना खुद पर बोझ लादने के बराबर है ! अगर यह व्यापारी भंडारे चलाने बंद कर दे तो सच कहता हूँ , यह जो आंकड़ा 3 से 4 करोड़ का हरिद्वार में से निकाला जाता है, वो निम्न स्तर पर सामने आने लग जाएगा, जब खुद की जेब से , बिना सुविधा के काँधे पर इतना सारा बोझ लाद कर कांवड़ उठाई जायेगी ! वो ही सच्ची लगन से लाई गयी कांवड़ होगी !
भगवान् को कभी चुनौती देने का बात दिमाग में मत लाओ, वो सब कुछ कर सकता है, जो तुम सोच भी नहीं सकते , जल्द तो दो छोटे से लोटों में भी लाया जा सकता है, गंगा के जल की एक बूँद ही जगत को तारने के लिए काफी है, तो फिर 51 लीटर से 251 लीटर तक जल उठा कर लाना आस्था से ज्यादा चुनौती के प्रदर्शन की भूमिका को दिखाता है, अपनी सामर्थ्य से ज्यादा प्रदर्शन भी दुखदाई हो जाता है, अगर आप के दिल में तो गलत भावना है, और आप गंगा जल उठाकर भोलेनाथ जी को चढ़ा रहे हो, तो क्या भोले बाबा यह नहीं जानते , वो सब कुछ जानते है, जो आप सोच भी नहीं सकते, वो उस से कहीं ज्यादा जानते है, दुनिया को धोखा दिया जाना आसान है, पर उस को नहीं, जिस ने तुम्हारा निर्माण खुद किया हो !
सत्यता पर आधारित यह लेख लिखा गया है, हो सकता है, मेरे पढ़ने वाले पाठक कुछ बुरा महसूस करें , पर मेरी भी आस्था ईश्वर के साथ वैसी ही है, जैसे दिल से कांवड़ लाने वाले की है, प्रदर्शन करने वाले के साथ नहीं है, खुद को ऐसी चीजों में चुनौती देने की नहीं है , जिस से किसी के दिल पर ठेस पहुंचे , कांवड़ के सख्त से सख्त नियम होते है, जिस का पालन करते हुए ही जल को उठाया जाता है, मैं कामना करता हूँ , कि आगे आने वाले वर्षों में जो कांवड़िये कांवड़ लाएंगे, वो बीते वर्षों से कुछ सबक जरूर लेंगे, ताकि गलतिओं को दोहराया न जाए, बल्कि उन गलतिओं से सबक लिया जाए, ताकि हर कांवड़िया सुरक्षित घर से जाए, और सुरक्षित भोले बाबा जी की कांवड़ लाकर उनके चरणों में शुद्ध और पवित्र माँ गंगा का जल चढ़ाये !!
“”जय शिव शंभू””
अजीत कुमार तलवार
मेरठ