Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Oct 2022 · 7 min read

आस्तीक भाग -सात

आस्तीक – भाग – सात

तीन तरफ से नदी से घिरा विकास से कोसो दूर रतनपूरा गांव उत्तर प्रदेश का अंतिम जनपद देवरिया का अंतिम गांव छोटी गंडक के किनारे स्थिति है।

छोटी गंडक के प्रतिवर्ष बाढ़ के प्रकोप कि मार झेलते गांव के लोग फिर भी जन्मभूमि से अटूट रिश्ते को निभाते जीते जाते कितनी ही पीढ़ियों ने जन्म लिया और चले गए मगर गांव किसी ने नही छोड़ा चाहे जितनी भी प्रकृति परमेश्वर कि चुनौतियां आयी।

सबको सहन किया स्वागत किया मगर मातृभूमि कि माटी को माथे का तिलक पैदा होने से लेकर जीवन पर्यंत लगाए रखा ।

गांव के बिभन्न वर्गों समुदायों में मतभेद भले ही रहे हो मगर कभी भी गांव कि शांति नही टूटी गांव में बहुसंख्यक अहीर,जुलाहा,मल्लाह,गोंड़, राजभर ,हरिजन,पासी एवं चार परिवार वैश्य,सात परिवार राजपूत,एक परिवार ब्राह्मण यही गांव की सांमजिक संरचना थी।

गांव का कुल रकबा यानी कृषि योग्य भूमि पांच सौ एकड़ थी जिसमे छ्ठे भाग के हिस्सदार गांव का ब्राह्मण परिवार था।

गांव में जिस प्रकार एक ही परिवार ब्राह्मण का था उसी प्रकार एक ही परिवार लोहार का था मुनेश्वर लोहार कहावत मशहूर था पूरे गांव में मुनेश्वर कि निहाय जब तक चलेगी कोई भूँखा नही मर सकता है ।

मुनेश्वर लोहार वास्तव में बहुत कर्मठ और अनपढ़ होते हुए भी सन्तुलित व्यक्तित्व के समझदार एव सुलझे व्यक्ति थे उनको अपने काम एव पारिवारिक विकास की चिंता रहती सुबह ही कोयला सुलगा कर निहाय पर बैठ जाते किसी को कुदाल,हल ,खुरपी कि धार तेज करानी हो या नई बनवानी हो बिना झिझक मुनेश्वर के यहां जाता और प्रशन्न होकर लौटता ।

मुनेश्वर के कई बेटे थे मुनेश्वर ने अपने बेटों को उस जमाने मे पढ़ाने कि कोशिश किया और सफल भी हुये उनके बेटों ने उनका नाम रौशन किया।

उनके बेटों में सुंदर जिन्हें लोग सुन्नर कहते थे मुन्नर जनार्दन आदि थे अशोक के पिता सुंदर एव हनीफ मिया साथ साथ पढ़े थे सुंदर भाईयों के साथ बाहर कमाने (नौकरी करने) चले गए हनीफ गांव कपड़े कि फेरी लगाते।

गांव में लोहार परिवार की नई पीढ़ी बड़े लगन मेहनत से अपने विकास हेतु कठिन परिश्रम कर रही थी जिसके परिणाम भी दिखने लगे थे मुनेश्वर को निहाई या लोहार का काम करने से जावरा वार्षिक पारिश्रमिक अनाज के रूप में या कुछ खेती मिलती जीविकोपार्जन के लिए निहाई का मतलब होता है (दुर्बल को ना सताईये जाकी मोटी हाय मुई खाल कि स्वास सो लौह भस्म होई जाय) को धीरे धीरे बन्द करना शुरू किया ।

गांव में ईंटे का पक्का पहला मकान अशोक का ही था जो खपरैल था दूसरा लिंटर मकान बनवाया शिवबालक सिंह जो बिहार पुलिस में कार्यरत थे लेकिन मुनेश्वर के बेटों ने सन्मति आपसी सहयोग सूझ बूझ से संयुक्त परिवार की एक नई नजीर प्रस्तुत किया और गांव का दूसरा लिंटर मकान बहुत आलीशान बनवाया जो गांव के अन्य परिवारों के लिए प्रेरक प्रेरणा बन गया ।

मुनेश्वर के ही परिवार के जनार्दन अब भी गांव के वरिष्ठ नागरिकों की श्रेणी में शुमार है अपने परंपरागत कार्य को कर रहे थे लकड़ी का एक लंबा बोटा था जिससे कुछ बनाया जाना था उनके साथ एक और सहयोगी हाथ मे टांगी लिए जनार्दन के ही समझाने पर लकड़ी के बोटे को डांगी से काट रहा था ।

एकाएक जनार्दन ने उसे लकड़ी के बोटे पर चार उंगलियों को रखकर बोटे को काटने का तरीका ही समझा ही रहे थे कि डांगी हाथ से छूट गयी और जनार्दन की दाहिने हाथ कि चार उंगलियां बीच से कट गई पूरे गांव में हाहाकार मच गया पूरे गांव के लिए बहुत बड़ी घटना थी ।

गाँव के लोग एकत्र हुए कटी उंगलियों को एकत्र कर जुड़ने कि नियत से एकत्र कर जनार्दन को चिकित्सा हेतु ले जाया गया मगर कटी हुई उंगलियों को नही जोड़ा जा सका जनार्दन आज भी गांव में उसी स्थिति में है ।

जनार्दन का छोटा भाई उदयभान उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही भर्ती हो गया एव अब वह सब इंस्पेक्टर पद से सेवा निबृत्त हो चुका है।

उस समय टी वी तो था नही रेडियो ही एक मनोरंजन का संसाधन था जिसकी पहुंच भी सीमित परिवारों तक ही थी उस समय जब किसी बड़े परिवार के लड़के का विवाह होता तो रेडियो सायकिल घड़ी कि अवश्य माँग दूल्हे के लिए होती साथ ही साथ एक दुधारू पशु की मांग लड़के का पिता अपने परिवार के लिए करता उस जमाने मे ये सब सुविध सम्पन्न लांगो की स्तर पहचान हुआ करता था ।

गांव में सावन में एक बार ग्राम देवी देवता कि पूजा का आयोजन होता था और वर्ष में कार्तिक मास में गांव के युवा सार्वजनिक चंदे से नाटकों का मंचन करते जिसमे एक माह पूर्व पात्र पूरी रात अपने चरित्र का अभ्यास करते और दो तीन दिन तक नाटको का मंचन होता ।

यह सब गांव कि चारदीवारी के अंदर के वार्षिक कार्यक्रम थे जो नियमित प्रतिवर्ष हुआ करते।अन्य मनोरंजन के संसाधनों में मेला प्रमुख था लोग पूरे वर्ष मेले का इंतज़ार बड़ी बेसब्री से करते जाते घूमते अपने अपने रुचि इच्छानुसार मेले में सहभागिता कर अपना मनोरंजन करते।

रतनपुरा के आस पास मेले जो अब भी लगते है चैत में बिहार मैरवा बिहार हरिराम बाबा का मेला यहाँ हरे राम बाबा का ब्रह्म स्थान है जहां यग्योपवित ,मुंडन संस्कार आदि आस पास एवं दूर दराज के लोग मान्यता के अनुसार करवाते यह मेला एक माह चलता है यहां भूत प्रेत बाधा एव पुत्र प्राप्ति की भी मनौती के शोखा तांत्रिक आदि बहुतायत संख्या कार्य करते है ।

दूसरा मेला दरौली में कार्तिक पूर्णिमा को दरौली अशोक के मामा के गांव एक माह के लिए लगता है यहां कहावत है कि आज भी आस पास के नौजवान सर्दी से निजात पाने के लिए रचाई लेकर मेला जाते है और ठंड से पूरे एक वर्ष के लिए निजात पाकर लौटते है स्वछंद आकाश के नीचे कौन किसकी रचाई में है जान पाना या अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है ।

तीसरा मेला बलिया का ददरी में कार्तिक पूर्णिमा में ही लगता है जो वर्ष भर के प्रेमी प्रेमिकाओं के मिलन का संगम स्थल है ।

चूंकि गाँव मे आज भी उतना खुलापन नही है अतः ये अवसर उपलब्ध है मेल मिलाप के ऐसा नही है कि इन मेलो में सिर्फ नौजवानों के लिए ही अवसर उपलब्ध है ।

इन मेलो में सिद्ध संत पुरुष के साथ साथ अन्य विशेष क्षेत्रो के लोग भी आते है मगर नौजवानों के लिए ये मेले विशेष आकर्षण का केंद्र अब भी है।

रतनपुरा के निवासियों के लिए हरिराम बाबा चैत राम नवमी का मेला एव कार्तिक पूर्णिमा दरौली का मेला सुगम एव सरल साथ ही साथ पहुंच में है ।

अतः अक्सर यहाँ के नौजवान चैत राम नवमी में बेल का शर्बत एव रजाई कि नई गर्मी कि तलाश में जाते है औऱ पूर्णतः संतुष्ट होकर आते है।

एक दिन सुबह अशोक आंख मलते उठा ठंठ कि शुरुआत हो चुकी थी पूरे गांव में खबर फैल चुकी थी कि दरौली के मेले में सुंदर को बिहार पुलिस ने पकड़ लिया था अब सबकी जिज्ञासा यह जानने की थी कि सुंदर को दरौली मेले में पुलिस ने क्यो पकड़ लिया पूरी तबतीस से गांव वालों को जो जानकारी उपलब्ध हुई वह चौकाने वाली थी ।

पता लगा कि सुंदर लोहार दरौली मेले में अपने रोब जोश जुनून में जवानी के आलम में चक्रमण कर रहे थे अपनी ठंठ रजाई कि गर्मी की तलाश में तभी उनकी टकराहट एक खोड़स बाला से हुई कुछ समय आपसी गुप्तगू के बाद बात बनी नही और वह नाराज होकर दरौली थाने चली गयी आनन फानन दरोगा जी ने पूरे मेले को छान मारा और सुंदर को पकड़ लिया और अपनी पुलिसिया हरकत शुरू ही करने वाले थे कि सुंदर ने अशोक के नाना केश्वर तिवारी का नाम ले लिया ।

सुंदर एव अशोक के पिता जी साथ साथ पढ़े भी थे सुंदर के साथ अशोक के पिता जी भारत कंस्ट्रक्शन कंपनी में मोकामा पुल निर्माण में काम भी किया था यह सारे तथ्य पण्डित केश्वर तिवारी के जानकारी में थे दामाद के मित्र जो थे ।

केश्वर तिवारी का आलम यह था कि दरौली के सभी आला हाकिम उनकी बहुत इज्जत करते वहाँ के आला हाकिमों में रजिस्ट्री आफिस का रजिस्ट्रार,थाने का थाना इंचार्ज, ब्लाक का वीडियो आदि प्रमुख थे तिवारी जी लगभग प्रतिदिन या तो इन अधिकारियों के यहॉ जाते आते या अपने घर ही मजमा लगाते तिवारी जी छ फुट लंबे बहुत प्रभवी काया एव माया के स्वामी थे शिक्षा तो बहुत नही थी मगर समझ एव सामाजिकता बहुत उच्च कोटि कि थी ।

अतः जब सुंदर ने उनका नाम लिया तब थानाध्यक्ष ने सुंदर के साथ बड़े अदब के साथ पेश आया और बोला कि अभी हम पण्डित जी को बुलवाते है दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा और थानाध्यक्ष ने अपनी बुलेट से एक सिपाही को भेजा पण्डित केश्वर तिवारी को लगा कि बात बहुत गंभ्भीर है अतः तुरंत सिपाही के साथ चल दिये थाने पहुंच कर देखा सुंदर लोहार एक किनारे दुबके बैठे है पण्डित जी ने पूछा सुंदर इंहा तू कैसे थानाध्यक्ष ने पूछा पण्डित जी आप इनको जानते है पण्डित केश्वर तिवारी ने कहा हा ये मेरे दामाद वसुदेव के दोस्त है और उन्ही के गांव रतनपुरा के रहने वाले है मुनेश्वर लोहार के परिवार से है क्या बात है दारोगा जी अपने इन्हें क्यो बैठाया है।

दरोगा शमी खान ने पण्डित जी को सारा विवरण तपसिल से बताया पण्डित जी ने कहा सुंदर तो बहुत संकोची एव सांस्कारिक है कोई भ्रम हो गया हो गया होगा थानाध्यक्ष शमी खान बोले आप कह रहे है तो निश्चित भ्रम ही हुआ होगा कोई बात नही और सुंदर लोहार से बोले वास्तव में आप बेहद शौम्य एव सांस्कारिक है जो पण्डित केश्वर तिवारी जी ने तारीफ किया ।

आप निर्भय हो हर वर्ष मेले में आइए अब आपसे कोई कुछ कभी नही पूछने का साहस करेगा।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।

Language: Hindi
179 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
View all
You may also like:
मेरा दुश्मन
मेरा दुश्मन
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
**प्याला जहर का हमें पीना नहीं**
**प्याला जहर का हमें पीना नहीं**
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
!! होली के दिन !!
!! होली के दिन !!
Chunnu Lal Gupta
"कविता के बीजगणित"
Dr. Kishan tandon kranti
प्रभु संग प्रीति
प्रभु संग प्रीति
Pratibha Pandey
Leading Pigment Distributors in India | Quality Pigments for Every Industry
Leading Pigment Distributors in India | Quality Pigments for Every Industry
Bansaltrading Company
कहां बिखर जाती है
कहां बिखर जाती है
प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
*नारी पर गलत नजर डाली, तो फिर रावण का नाश हुआ (राधेश्यामी छं
*नारी पर गलत नजर डाली, तो फिर रावण का नाश हुआ (राधेश्यामी छं
Ravi Prakash
तेरे ख़्याल में हूं,मैं तेरे ज़िक्र में हूं ,
तेरे ख़्याल में हूं,मैं तेरे ज़िक्र में हूं ,
Dr fauzia Naseem shad
अर्थ  उपार्जन के लिए,
अर्थ उपार्जन के लिए,
sushil sarna
शब्द ही...
शब्द ही...
ओंकार मिश्र
सत्य यह भी
सत्य यह भी
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
कन्या
कन्या
Bodhisatva kastooriya
दिल का दर्द
दिल का दर्द
Dipak Kumar "Girja"
पहली दस्तक
पहली दस्तक
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
राहों में खिंची हर लकीर बदल सकती है ।
राहों में खिंची हर लकीर बदल सकती है ।
Phool gufran
वह सिर्फ तू है
वह सिर्फ तू है
gurudeenverma198
🙅जय जय🙅
🙅जय जय🙅
*प्रणय*
"" *जीवन आसान नहीं* ""
सुनीलानंद महंत
श्री गणेश भगवान की जन्म कथा
श्री गणेश भगवान की जन्म कथा
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
ए चांद आसमां के मेरे चांद को ढूंढ ले आ,
ए चांद आसमां के मेरे चांद को ढूंढ ले आ,
इंजी. संजय श्रीवास्तव
चर्चित हो जाऊँ
चर्चित हो जाऊँ
संजय कुमार संजू
“श्री गणेश”
“श्री गणेश”
Neeraj kumar Soni
हाथ में उसके हाथ को लेना ऐसे था
हाथ में उसके हाथ को लेना ऐसे था
Shweta Soni
छवि के जन्मदिन पर कविता
छवि के जन्मदिन पर कविता
पूर्वार्थ
4634.*पूर्णिका*
4634.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
औरत अपनी दामन का दाग मिटाते मिटाते ख़ुद मिट जाती है,
औरत अपनी दामन का दाग मिटाते मिटाते ख़ुद मिट जाती है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
Shankar lal Dwivedi and Gopal Das Neeraj together in a Kavi sammelan
Shankar lal Dwivedi and Gopal Das Neeraj together in a Kavi sammelan
Shankar lal Dwivedi (1941-81)
कागज़ ए जिंदगी
कागज़ ए जिंदगी
Neeraj Agarwal
काश ! ! !
काश ! ! !
Shaily
Loading...