आस्तीक भाग -दस
आस्तीक भाग – दस
राधा कृष्ण बनाम बृजबल्लभ दास मुकदमा संख्या
1172/1961 देवरिया के जे एम चार के न्यायालय में चलने लगा अब आचार्य पण्डित हंस नाथ मणि त्रिपाठी जी की आयु पचहत्तर वर्ष से ऊपर की हो चुकी थी ।
इस विवाद में आचार्य पण्डित हंसः नाथ के पक्ष से पहले वकील शिवधारी सिंह एव बाद में ऋषि सिन्हा थे एव बृजबल्लभ दास के वकील विंध्याचल मिश्र एव राम रुचि मिश्र के वकील बैजनाथ गोयल थे तब इस मुकदमे कि पैरवी में स्वय अशोक को ही जाना पड़ता।
एक तारीख को फीस ऋषि कांत सिन्हा को नही मिली थी उन्होनें कोर्ट में पुकार होने पर जाने से ही इनकार कर दिया अशोक ने बहुत अनुरोध किया फिर भी ऋषि सिन्हा कोर्ट में नही गए तब अशोक ने स्वय जाकर अगली तारीख ली ।
धीरे धीरे समय बीतता रहा अब आचार्य पण्डित हंस नाथ मणि त्रिपाठी के पास अशोक के अतिरिक्त कोई था ही नही जो मुकदमे कि पैरवी करता मुकदमे में गवाही हुई और जौँनपुर के नए न्यायिक सेवा के न्यायिक मजिस्ट्रेट आये ओम प्रकाश मिश्रा गवाही ने आचार्य पण्डित हंस नाथ मणि से उन खेतो की चौहद्दी पूछा जो सदानंद मिश्र द्वारा मंदिर के लिए राधाकृष्ण के नाम रजिस्ट्री की गई थी एव सर्वराकार पण्डित हंस नाथ मणि जी को नियुक्त किया गया था आचार्य चौहद्दी नही बता पाए पजेशन के आधार पर पेटिशन ओम प्रकाश मिश्र द्वारा खारिज कर दिया गया निर्णय में सदानंद मिश्र कि रजिस्ट्री कि वैधता को प्रमाणिकता प्रदान कर सर्वराकार हंस नाथ मणि जी को माना गया वर्ष उन्नीस सौ अस्सी में यह फैसला आया।
पुनः आचार्य हंसः नाथ मणि जी ने जिला एव सत्र न्यायालय में वाद दाखिल किया जो चलने लगा इस विवाद में समझौते के भी प्रायास हुये जिसमे शर्त यह थी कि जब तक बृजबल्लभ दास जीवित है मंदिर का कार्य भार देंखेंगे उसके बाद पण्डित हंस नाथ मणि जी जिसको सर्वावरकार नियुक्त करेंगे वही सर्वराकार होगा लेकिन बृजबल्लभ दास की नियत ही खोट एव धूर्तता वाली थी वह चाहता ही था मंदिर को अपनी पुश्तैनी सम्पत्ति बनाना उसने समझौते की शर्त मानने से इंकार कर दिया।
उधर गांव जदुनाथ मल्लाह का परिवार शसक्त होता गया उनके परिवार के कुछ नौजवान बैंकाक गए जिसके कारण यदुनाथ के परिवार कि आर्थिक स्थिति भी बहुत मजबूत हो गयी लक्ष्मी साह कि प्रधानी जाती रही और आचार्य पण्डित हंस नाथ के छोटे भाई पण्डित उमाशंकर जी का देहावसान उन्नीस सौ इक्यासी में हो गया अतः रामधारी के परिवार के विवाद के विषय मे जानकारी स्प्ष्ट है।
आज भी दोनों मल्लाह परिवार अगल बगल ही रहते है एक राजा दूसरा रंक ।
धीरे धीरे आचार्य पण्डित हंस नाथ अपने पारिवारिक परेशानियों को सुधारने का प्रायास करते रहे और जिला एव सत्र न्यायालय के मुकदमे पर ध्यान नही दे पाए जिसके कारण पुनः बृजबल्लभ दास के लिए पौ बारह हो गया।
परासी चकलाल में एक परिवार था वाला जी मिश्र का जो मंदिर के विषय मे मुकदमे के दौरान साथ प्रतीत होते मन से थे या नही अशोक के बाल मन के लिए यह जान पाना सम्भव नही था लेकिन मन्दिर विवाद के मध्य अधिक मास में श्रीमद भागवत के कथा के आयोजन का भार पण्डित हंस नाथ मणि त्रिपाठी के लिए वहीं करते।
बाला जी स्थानीय पहलवान थे उनके एक भाई विंध्याचल मिश्र थे जो विकलांग थे एव अविवाहित वाला जी की पांच संताने थे बजरंग विनायक आदि बाला जी के जिक्र के बिना अशोक कि यह यात्रा सोचना भी कल्पना मात्र है बचपन मे अशोक बाला जी मिश्र के घर एक दो बार गया भी है उनके विषय मे यह कहा जाता है कि एक बार बाला जी बनारस गए और उनके पास लौटने के लिए मसूल (किराया ) नही था उनको पता चला कि बनारस में कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है बाला जी ने रात भर अपने बदन पर सरसो के तेल में साबुन लगा कर मालिश किया साबुन एव तेल का पैसा किसी तरह मिल गया और सुबह कूद पड़े दंगल में वह भी बहुत बड़े पहलवान को चुनौती दे डाली।
दोनों का मुकाबला शुरू हुआ जब भी विरोधों पहलवान बाला जी को पकड़ने के लिये जोर आजमाइश करता फिसल जाते अंतिम बार बाला जी ने उस पहलवान को पछाड़ दिया और विजयी हुए यह किविदंति मशहूर थी वाला जी के विषय मे ।
बाला जी जीवंत एव शसक्त व्यक्तित्व थे उनका बड़ा बेटा बजरंग मेरे साथ कुछ दिनों तक सहपाठी रहा है वाला जी मिश्र के पट्टीदार रामनरेश मिश्र का परिवार तब पड़ोस में ही रहता था रामनरेश के परिवार की माली स्थिति मजबूत थी।
रामनरेश मिश्र एव बाला जी के परिवार में पट्टीदारी का विवाद अक्सर होता रहता एक दिन विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों परिवार एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए बाला जी मिश्र अकेले उनके पांच छोटे छोटे बच्चे रामनरेश मिश्र के परिवार में सवांगो (परिवार में सदस्यों की संख्या)अधिक थी अतः बाला जी को घेर कर तब तक वार करते रहे जब तक यह नही समझ मे आ गया कि वह मर गए है ।
बाला जी के परिवार में रोना थोना शुरू हो गया कुछ देर में ही बाला जी के शरीर मे कम्पन हुई और उठ खड़े हुए और अपने घंवो को अंगौछे से बांध लिया उनकी पत्नी ने उन्हें भाला फेंक ललकारा अब क्या था बाला जी घायल शेर कि तरह रामनरेश के परिजनों पर काल बन कर टूट पड़े और तब तक अकेले लड़ते रहे जब तक राम नरेश मिश्र का परिवार भाग खड़ा नहीं हुआ वास्तव में बाला जी मिश्र जैसे साहसी पराक्रमी व्यक्तित्व विरले हुआ करते है।
अनेको संघर्षो से लड़ते उबरते बाला जी ने पांचों पुत्र को सुरक्षा सेवाओ में नौकरी मिल गयी और देखते देखते उनकी सामाजिक पारिवारिक स्थिति में सार्थक परिवर्तन हुए।
बाला जी का बड़ा पुत्र बजरंग अशोक का सहपाठी उत्तरप्रदेश पुलिस सेवा में कांस्टेबल से थानेदार तक पहुंचा बाकी भाईयो कि भी अच्छी खासी हैसियत है।
एक दिन शाम को सात आठ बजे रात को अशोक सोया था उस दिन छोटे ताजिया कि रात थी स्वच्छ चांदनी सर्द रात गांव में बच्चे मुहर्रम के लिए रात को तरह तरह के करतब दिखाते एव अभ्यास करते यह कार्यक्रम चल रहा था ।
तभी गांव में एका एक शोर होने लगा चलो सब लोग नही तो कैलाश गोसाई गोपाल बाबा को मार देगा गोपाल मणि त्रिपाठी अशोक के बड़े भाई थे जो अपने जमाने मे बहुत बहादुर जोशीले नौजवान थे ।
वह शाम को ताल के खेत मे गए थे हर वर्ष बाढ़ के कारण ताल डूबा रहता अतः बाढ़ समाप्त होने के बाद उस ताल में बरसीम बीम या लतरी बोई जाती थी उस वर्ष फसल बहुत अच्छी थी फसल को चोरी छिपे प्रतिदिन कोई काट ले जाता था यही जानकारी करने अशोक के भाई गोपाल शाम को ताल के खेत गए और खेत मे बीचोबीच सो गए उनके कपड़े का रंग ऐसा था जिससे पता नही चल सकता था कि खेत मे सोया है।
कैलाश गोसाई आया और फसल काटने लगा कैलाश गोसाई का रुतबा इतना था कि कोई भी उंसे देख रास्ता छोड़ देता उसके ऊपर हत्या आदि के बहुत आरोप पहले से ही थे वह पूरे जवार में शातिर अपराधी के रूप में कुख्यात था।
जब गोपाल मणि ने देखा कि कैलाश फसल काट रहा है तो उन्होंने उसे रोकने की कोशिश की मगर वह मगरूर घमंडी अहंकारी मद में चूर एक नौजवान को मामूली बच्चा समझ अनाप सनाप बोलते हुए अपना परिचय कैलाश गोसाई बताया गोपाल मणि की आयु मात्र सत्रह वर्ष थी कैलाश गोसाई को लगा यह बालक उसके लिए शेर के सामने गीदड़ जैसा ही था बार बार मना करने पर कैलाश गोसाई नही माना और उसने गोपाल मणि पर आक्रमण कर दिया ।
गोपाल मणि ने भी उसके हौसलों को आजमाया और जब कोई रास्ता नही सुझा तब उन्होंने टक्कर सर से उसके नाक फिर मुहँ पर तबातोड़ मारा उसके नाक से रक्त कि धारा बह निकली एवं दांत टूट गए जब कैलाश गोसाई को लगा कि वह अकेला नही कुछ कर सकता है तो वह चिल्लाते हुए अपने घर गौरा गया और अपने शातिरों कि फौज को ललकारा।
इतना समय मिलते ही गोपाल भागते हुए रोपन छपरा भद्रसेन मास्टर के दरवाजे पर पहुंच गए वहां मास्टर साहब के दरवाजे पर कुछ लोग कौड़ा(अलाव) ताप रहे थे जब उन लांगो ने भागते नौजवान को अपने समीप आते देखा तब सब खड़े हो गए पीछे पीछे कैलाश गोसाई एव उसके आदमी थे हांफते हांफते गोपाल मणि ने अपने बारे में एव घटना के विषय मे बताया तब तक भाला बल्लम लाठी आदि के साथ कैलाश गोसाई भी लाव लश्कर के साथ पहुंचा तब तक भद्रसेन मास्टर एव रोपन छपरा के लोग (रोपन छपरा राजपूतों का सम्पन्न गांव है) एकत्र हुए और वास्तविकता की जानकारियां जाननी चाही तुरंत ही सच्चाई सबके सामने बहुत स्प्ष्ट थी ।
रोपन छपरा के राजपूतों के सामने कैलाश गोसाई कितने बड़े शातिर अपराधी क्यो न रहे हो कुंछ नही थी इतने देर में अशोक के गांव के लोग भी पहुंच गए पंचायत हुई और पंचायत ने कैलाश गोसाई को दोषी ठहराया और सजा के तौर पर जूते में थूक कर चाटने का आदेश पारित किया ।
अब कैलाश गोसाई की औकात ठिकाने थी मामला लगभग रात्रि बारह बजे तक निपटा अशोक के भाई गोपाल एव गांव वालों साथ लौट कर आये ।
सुबह यह चर्चा आम थी कि गोपाल बाबू ने कैलाश गोसाई कि औकात ठिकाने लगा दिया और सच भी साबित हुआ कैलास जो स्थानीय बाहुबली शातिर अपराधी शारिरिक शक्ति में पहलवान था को कोई भी कुछ भी बोल देता और दौड़ा लेता उसका मान मर्दर्न रोपन छपरा के राजपूतों ने एव गोपाल मणि ने ऐसा कर दिया कि वह कही का न रहा ।
लेकिन अशोक के परिवार को लगा कि शातिर अपराधी कब कहा रंग रूप बदल कर घात कर बैठे अतः गोपाल को कानपुर शिक्षा दीक्षा के लिए भेज दिया गोपाल मणि कानपुर के ही होकर रह गए कभी कभार खेती बारी के कार्य या परिवारिक कार्यक्रम में शरीक होने आते है कैलाश गोसाई अब दुनियां में है नही।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखुर उत्तर प्रदेश।।