आस्तीक भाग-एक
आस्तीक -भाग एक
बलिया में नए प्रबंधकीय बदलाव पुरानी परंपरा कि क्रमबद्धता कि ही शसक्त कड़ी थी पंकज गोपाल जी के बाद उन्ही कि दूसरी कड़ी अजीत उपाध्याय जी ने कार्यभार ग्रहण किया ठीक उसी दिन अशोक के विवाह की वर्षगांठ थी नए निज़ाम के आगमन में वातावरण में उत्साह और उद्देश्यों कि आशाओं के नए आकाश पर कल्पनाओं और वास्तविकता का सामना निश्चित था ।
चाहे प्रशासनिक बदलाव जनपदों में होते है या प्रबंधकीय बदलाव संस्थाओं में सम्बंधित प्रत्येक व्यक्ति नए प्रशासन या प्रबंधकीय शक्ति को अपने अपने तौर तरीकों से आंकता है एव उंसे अपनी तरफ आकर्षित करने के लिये अपने अपने प्रायास करता है जिससे छोटे मोटे नफे नुकसान कि भरपाई एव आंकलन हो सके।।
पुराने निज़ाम कि टीम नए निज़ाम को नए अंदाज से नए अरमानों के लिये स्वागत अभिनन्दन करती है यह भारतीय प्रशासनिक प्रवंधकीय परम्पराए है जो व्यक्ति आता है या जाता है सभी वास्तविकताओं से भिज्ञ होता है फिर भी उंसे अपने कार्यकाल कि उपलब्धियों के लिये अपने माप दण्डों के अनुसार टीम या सेना का निर्माण करता है ।।
परंपरा का अभिन्न हिस्सा अपने अपने लाभ हानि के अनुरूप सभी मातहत होते है कोई आने वाले कि कमजोरियों को आंकता है तो कोई जाने वाले कि कमियों को नवागंतुक के समक्ष प्रस्तुत कर स्वय कि उपेक्षा कि कहानी कि पीड़ा से नवागंतुक को आकर्षित करना चाहता है तो कोई किसी अन्य तौर तरीकों से सबके अपनी अपनी प्राथमिकताये और निर्धारण होते है।।
इसी वातावरण में कार्यालय चल ही रहा था कि एकाएक एक दिन प्रभारी महोदय ने अशोक को बुलाया अशोक जानता था कि बहुत भद्र ,शौम्य ,विनम्र संवेदनशील व्यक्तित्व से सामना है जिससे कुछ भी नही छुपा है अशोक भी व्यक्तित्व के अनुरूप एक आदर्श मातहत कि तरह समक्ष उपस्थित हुआ उन्होंने अशोक को बताया कि मऊ जनपद में उप चुनाव होने वाले है जिसका कुछ हिस्सा बलिया जनपद में आता है जिलाधिकारी बलिया के यहां से आदेश आया है कि चुनाव संबंधित तैयारियों एव जानकारियों के लिए अभी एव भविष्य में सभी क्रियाकलापों में जिलाधिकारी कार्यालय के किसी कार्यवाही में आप विभाग का प्रतिनिधित्व करेंगे अशोक बेहद स्वतंत्र विचारों का व्यक्ति उसे लगा कि साहब ने उसके पैरों में बेड़ी डालने का बौद्धिक सकारात्मक आदेश दे दिया।।
स्वतंत्र विचारों का होने के बावजूद अशोक अपने अधिकारियों एव कर्तव्यों के प्रति संवेदनशील एव ज्यादा जागरूक था।
अशोक ने आदेश को शिरोधार्य करते हुए जिलाधिकारी के चुनांव संबंधी मीटिंग में सम्मीलित होने गया वहाँ अशोक कि मुलाकात तेईस चौबीस वर्ष के एक नौजवान से हुई जो कद काठी में छोटा देखने मे बेहद सामान्य से हुई उस नौजवान ने मुझे देखते ही कहा आइए अशोक जी उपाध्याय जी के यहाँ से आये है अशोक को बिल्कुल आश्चर्य नही हुआ पता था की उसके के विषय में जानकारी उस नौजवान को है पूछा आप कौन उस नौजवान ने बड़े मनोरहारी अपने स्वाभाविक भाव अंदाज़ से बताया मैं मृत्युंजय नारायण प्रसाद मुख्य विकास अधिकारी उन्नीस सौ सत्तानवे बैच का आई ए एस हूँ और जिला निर्वाचन संबंधित सभी कार्य माननीय जिला अधिकारी अग्रवाल साहब के निर्देश पर संचालित कर रहा हूँ।।
अशोक को कही से यह नही लग रहा था कि वह अपने किसी पुराने मित्र से बात नही कर रहा है कोई अजनवी नहीं जिससे उसकी अभी अभी मुलाकात हुई है।
अशोक के मन मे भारत के उन नौजवान का दृश्य घूम गया जो आशाओं विश्वास आस्थाओं कि धरातल पर माँ बाप कि कमाई के एक एक पैसे कि भरपाई अपने कठिन परिश्रम लगन से सार्थक कर राष्ट्र समाज मे एक मुकाम हासिल करते है जिनके मन मे राष्ट्र समाज मे कुछ बहुत कुछ सार्थक सकारात्मक करने का युवा उत्साह एव जज्बा होता है।।
उसी का प्रत्यक्ष जीता जागता संस्करण मृत्युंजय नारायण प्रसाद सामने खड़े थे ।।
बहुत देर तक व्यक्तिगत बार्तायें होती रही और उसके बाद मीटिंग शुरू हुई और चुनांव संचालन कर्तव्यों के निष्पादन के लिये उचित दिशा निर्देश मिले और मीटिंग सममप्त हुई ।
चुनांव संबंधित कार्यो हेतु अशोक को कई बार जाना पड़ा जहाँ मृत्युंजय नारायण प्रसाद जी से हर बार मुलाकात और बात अवश्य होती उनकी विशेषता यह थी उनसे मिलने वाला प्रत्येक व्यक्ति आपने आपको उनका खास एव सौभग्यशाली समझता था ।
एक तो एक प्रशासनिक अधिकारी कि कृपा और स्नेह का दीर्घकालिक सम्बन्ध कि परिकल्पना प्रत्येक व्यक्ति को मोहित कर देती ।
चुनांव कि तिथि आ गयी मगर अशोक कि ड्यूटी चुनावी मतदान प्रक्रिया में नही लगी कार्यालय में सुगबुगाहट थी कि उपाध्याय जी ने अशोक को जान बूझ कर चुनावी कार्य मे कार्यालय का प्रतिनिधित्व करने को भेजा जिससे कि चहेतों कि चुनांव में ड्यूटी न लग सके ।।
देश में एक अजीब मानसिकता है की जब भी किसी की चुनांव ड्यूटी लगती है तो लगता है कोई आफत खड़ी हो गयी कुछ लोग जिलाधिकारी तक अपनी पहुँच का जलवा बताते है तो कुछ लोग जान बूझ कर चूनावी कार्य से येन केन प्रकारेण विरत रहना चाहते है यही वास्तविकता है ।।
खैर विवाद हीन निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान सम्पन्न हुआ और मतगणना के लिये चुनावी ड्यूटी आवंटित हुई जिसमें अशोक का नाम था उस समय चुनांव बैलेट पेपर से हो होते थे।।
उप चुनाव कल्पनाथ राय कि मृत्यु के कारण रिक्त संसदीय क्षेत्र के लिये हो रहे थे उस समय उत्तर प्रदेश में दो राजनीतिक व्यक्तित्व ऐसे थे जिनको विकास पुरुष के रूप में जन प्रियता प्राप्त थी गोरखपुर से बीर बहादुर सिंह जी एव मऊ से कल्पनाथ राय कल्पनाथ राय कि दूसरी पत्नी श्रीमती सुधा राय एव पहली पत्नी से पुत्र सिद्धार्थ बिभन्न राजनीतिक दलों से एक दूसरे के खिलाफ प्रत्यासी थे अशोक कि संवेदनाएं सिद्धार्थ के साथ थी क्योंकि वे सीधा साधे मिलनसार और मृदुभाषी थे।
अशोक ने निश्चय मन ही मन कर लिया था चाहे जो हो जाये सिद्धार्थ को विजयी बनाने के लिये जो भी कर सकत है करेगा अंजाम चाहे जो भी हो।।
अशोक ने इस दृढ़ निश्चय की जानकारी किसी को नही थी ठीक दस बजे मतगणना स्थल पर पहुंच गया अशोक को जो टेबल मतगणना के लिए मिली थी उस पर बूथों कि संख्या अपेक्षा कुछ अधिक थी प्रातः दस बजे से सांय चार बजे तक जितने भी वोट अशोक मतगणना बूथों पर डाले गए थे उसमें पांच से साथ प्रतिशत वोट छोड़कर बाकी सारे वोटो कि गणना अशोक ने सिद्धार्थ के पक्ष में कर दी अशोक कि ड्यूटी समाप्त ही होने वाली थी तव तक प्रदेश के पूर्व स्वस्थ मंत्री घूरे राम बहुत गुस्से में अनाप सनाप बोलते हुए अशोक के सामने आए और चिल्लाने लगे मतगणना में धांधली इनके द्वारा कि जा रही है तब तक सिद्धार्थ आगे निकल चुके थे हंगामा बढ़ता देख तुरंत मृत्युंजय नारायण प्रसाद जिला निर्वाचन आधिकारी आये और बोले अशोक आप जाए मैं देखता हूँ क्या शिकायत है घूरे राम जी को।।
अशोक वहां से चला आया मगर उसके मन मे एक यक्ष प्रश्न अवश्य खड़ा हो गया वह सोचने लगा कि भारत का नौजवान जो प्रशासनिक या पुलिस या उच्च प्रबंधकीय सेवाओ में है वो सेवाओ में चयनित होने से पहले हाड़ तोड़ आंख फोड़ू मेहनत कर कठिनतम प्रतिस्पर्धात्मक चुनौतियों को विजित कर इस मुकाम को हासिल करता है तो क्या मेरे जैसे आम नगरिक एव घूरे राम जी जैसे भारतीय राजनीतिक संस्कृति संस्कार इन बौद्धिक दक्षता को प्रभावित कर दूषित नही करते जिससे यही अमला राजनीतिक महत्वाकांक्षा एव बाहुबली संस्कृति को अंगीकार करने को विवश हो जाता है जिससे राष्ट्र कि अवधारणा समानता विकास प्रभावित होती है ।।
बहुत लांगो ने अशोक कि पीठ थपथपाई अशोक बहुत मजबूत इरादों का आदमी है विरोधियों और जोखिमो के बीच भी जो चाहता है हासिल कर लेता है।।
हालांकि ना तो सिद्धार्थ चुनांव जीत सके ना ही सुधा राय कल्पनाथ राय कि राजनीतिक विरासत छिन्न भिन्न हो गयी ।
अशोक ने बाद में एक व्यक्तिगत पत्र कल्पनाथ राय कि विधवा सुधा राय को लिखा जब वह उत्तरप्रदेश मगर हो सकता हो उन्होनें ध्यान न दिया।।
भारतीय राजनीति की विडम्बना है कि जब राजनीतिज्ञ सफल रहता है तो बहुत सी वे बाते उंसे बेमतलब लगती है जिसकी चुनौतियों का उंसे भविष्य में सामना करना होता है या करने के बाद सफलता का वरण करना होता है।।
ऐसा ही कुछ अशोक द्वारा सुधा राय जी को लिखे पत्र का हस्र हुआ आज बहुत कुछ स्थिति स्पष्ठ है और समय बहुत आगे निकल चुका है।।
अशोक निज़ाम के मातहद अपने कार्य मे मशगूल हो गया और अपने लिए बेहतर उपलब्धियों के अवसर के आगमन का इंतजार करने लगा।।
कहानीकार नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखुर उतर प्रदेश।।